Thursday, 30 June 2022

अतिक्रमण हटाया:कलेक्टर के निर्देश पर कजानीपुर में जसीबी से 35 बीघा जमीन से प्रशासन ने अतिक्रमण हटाया

 करौली

चरागाह भूमि गैर मुमकिन बगीची पर प्रभावशाली लोगों ने अतिक्रमण किया था

ग्राम कजानीपुर स्थित राजकीय चारागाह व गैर मुमकिन बगीची की लगभग 35 बीघा भूमि को मंगलवार को अतिक्रमण मुक्त किया गया। इसके लिए कलेक्टर अंकित कुमार सिंह के निर्देश पर धर्मसिंह तहसीलदार हिंडौन व कार्यवाहक तहसीलदार श्रीमहावीरजी नियुक्त किये जाने पर धर्मसिंह तहसीलदार और श्रीमहावीरजी की ओर से उपखण्ड अधिकारी अनूप सिंह के निर्देश पर उक्त अतिक्रमण को हटाने की कार्यवाही की गयी।

गौरतलब है कि ग्राम कजानीपुर स्थित चारागाह व गैर मुमकिन बगीची की लगभग 35 बीघा भूमि पर अतिक्रमियों की ओर से अतिक्रमण किये जाने पर कलेक्टर ने प्रकरण में जांच कर आवश्यक कार्यवाही के निर्देश दिये गये। निर्देशों की पालना में उपखण्ड अधिकारी अनूप सिंह ने तहसीलदार श्रीमहावीरजी को मौका मजिस्ट्रेट नियुक्त कर अतिक्रमण हटाने के लिए निर्देशित किया गया। सीमाज्ञान व अतिक्रमण हटाने के सम्बन्ध में कार्यवाही पिछले 19 दिनों से की जा रही थी।

उक्त अतिक्रमण को उपखण्ड अधिकारी ने संज्ञान में लिये जाने पर धर्मसिंह तहसीलदार महावीरजी ने मय राजस्व व पुलिस जाब्ता की टीम के साथ मौके पर कानून व्यवस्था कायम करते हुए कजानीपुर स्थित चारागाह भूमि और गैर मुमकिन बगीची की भूमि से अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही की गयी। अतिक्रमण हटाने के दौरान तहसीलदार श्रीमहावीरजी धर्मसिंह, नायब तहसीलदार महावीर प्रसाद, पुष्पेन्द्र राजवात भूअनि, अशोक डागुर पटवारी, राजस्व दल व पुलिस जाब्ता मौके पर तैनात रहा।


https://www.bhaskar.com/local/rajasthan/karauli/news/on-the-instructions-of-the-collector-the-administration-removed-the-encroachment-from-35-bighas-of-land-from-jcb-in-kajanipur-129996742.html


निरीक्षण कार्यक्रम: रीको में भूखंडों की होगी जांच, कमर्शियल या व्यक्तिगत उपयोग मिलने पर होगी कार्रवाई

औद्योगिक क्षेत्र के विस्तार के लिए रीको में प्रदान भूखंडों की जांच की जाएगी। भूखंड का उपयोग कमर्शियल या व्यक्तिगत उपयोग करते पाए जाने पर कार्यवाही की जाएगी। साथ उद्योग स्थापना के लिए जिला उद्योग केन्द्र की ओर से प्रदान किए ऋणों की भी जांच की जाएगी।

जिसमें ऋण की राशि का उपयोग कहां किया गया है, इसका निरीक्षण करने के साथ ही जांच की जाएगी। गड़बड़ी मिलने पर ऋण लेने वाले के खिलाफ कार्यवाही होगी। इस तरह के निर्देश मंगलवार को एडीएम हेमेन्द्र नागर ने जिला कलेक्टर सभाकक्ष में जिला उद्योग एवं वाणिज्य केन्द्र की समीक्षा बैठक में अधिकारियों को दिए हैं।

एडीएम ने रीको एरिया में चले रहे उद्योगों के बारे में समय-समय पर मॉनिटरिंग करने के निर्देश दिए हैं। रीको में जो भूमि प्रदान की गई है, उसका उपयोग उद्योग में ही किया जाए। जिले के रीको क्षेत्र में आवंटित उपखण्डों के बारे में जानकारी ली।

इस पर रीको प्रबंधक अजय विश्वकर्मा ने बताया कि गलियाकोट, सागवाड़ा, बिछीवाड़ा, साबला, आसपुर, चिखली, सीमलवाड़ा एवं डूंगरपुर में रीको एरिया है। इसमें गलियाकोट, सीमलवाड़ा, सागवाड़ा, साबला में रीको की जमीन पर उद्योग स्थापित की प्रक्रिया जारी है।

सीमलवाड़ा के भादर में रीको के लिए चयनित भूमि चारागाह के होने से स्वीकृति नहीं मिली है एवं सागवाड़ा में जयपुर से कमेटी आकर स्वीकृति जारी करने के बारे में जानकारी दी। जिला उद्योग अधिकारी हितेश कुमार जोशी से व्यवसाय के लिए दिए जाने वाली ऋण के बारे में जानकारी ली।

ऋण का उपयोग जिस व्यवसाय के लिए लिया है, उसके अनुरूप व्यवसाय संचालित होने के बारे में मॉनिटरिंग करने की कहा। उन्होंने पुराने ऋण प्राप्त करने वाले व्यवसायी के अलावा नए ऋणी की जानकारी लेते हुए निरीक्षण करने के निर्देश दिए। एडीएम ने मुख्य सचिव के माध्यम से की जाने वाली समीक्षा में फ्लैगशिप योजनाओं की जानकार ली।

इस पर जोशी ने बताया कि मुख्यमंत्री लघु उद्योग प्रोत्साहन योजना के 2022-23 में 201 लक्ष्य प्राप्त हुए है, जिसमें 68 आवेदन बैंकों को प्रेषित कर दिए है। 54 आवेदन स्वीकृत कर 215.48 लाख रुपए की राशि बैंकों द्वारा स्वीकृत की गई है। बैठक में विद्युत विभाग के अधीक्षण अभियंता आरआर खटीक, अनिल कुमार आमेटा, रोहित मेहता, राकेश नाहर एवं श्रम विभाग के वरिष्ठ सहायक कमलाशंकर मीणा मौजूद रहे।

मूल ऑनलाइन लेख - https://www.bhaskar.com/local/rajasthan/dungarpur/news/plots-will-be-investigated-in-rico-action-will-be-taken-on-getting-commercial-or-personal-use-129993072.html


आशंका...:खरैटा में अतिक्रमण हटाने की मांग,‎ ग्रामीणों ने एसडीएम को ज्ञापन दिया‎

अतिक्रमण नहीं हटवाया तो हो सकता है विवाद‎

गांव खरैटा में अतिक्रमण हटवाने को लेकर सरपंच सहित ग्रामीणों ने कार्यवाही की मांग को लेकर तहसील परिसर में प्रदर्शन कर एसडीएम को ज्ञापन दिया है। खरैटा सरपंच भूदेव सिंह डागुर ने बताया कि ग्राम पंचायत खरैटा के राजस्व ग्राम खरैटा, झिरना, बमनपुरा में सिवाचक व चारागाह भूमि पर आमजन की ओर से अतिक्रमण किया जा रहा है। जिसकी शिकायत पूर्व में कलेक्टर से की जा चुकी है। जिस पर कार्यवाही करते हुए तहसीलदार हिंडौन ने सीमाज्ञान कर अतिक्रमण हटाने के निर्देश हल्का पटवारी व गिरदावर की रिपोर्ट पर लगभग 10 महीने पूर्व जारी किए थे।

अतिक्रमण हटाने के लिए टीम भी गठित की गई थी। 10 माह गुजर जाने के बाद भी धरातल पर किसी भी तरह का कोई कार्य नहीं किया गया है। जिससे अतिक्रमणकारियों के हौंसले बुलंद होते जा रहे हैं। ग्रामीणों व अतिक्रमणकारियों के बीच पशु चराने को लेकर आपसी लड़ाई होती रहती हैं। जिससे गांव में अशांति का माहौल बन रहा है और संघर्ष की आशंका बनी हुई है।

सरपंच ने बताया कि मौजूदा स्थितियों में जन हानि की प्रबल संभावनाएं बनी हुई है। उक्त विषय के संदर्भ में लिखित व मौखिक तौर पर कई बार तहसीलदार को अवगत कराया जा चुका है। लेकिन फिर भी कोई भी कोई कार्यवाही नहीं की गई है। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर भविष्य में कोई भी तरीके की ग्राम पंचायत के अंदर जन हानि होती है तो उसकी समस्त जिम्मेदारी प्रशासन की होगी।

मूल ऑनलाइन लेख - https://www.bhaskar.com/local/rajasthan/karauli/hindaun/news/demand-for-removal-of-encroachment-in-kharita-villagers-gave-memorandum-to-sdm-129996682.html


अतिक्रमण हटाया: कलेक्टर के निर्देश पर कजानीपुर में जसीबी से 35 बीघा जमीन से प्रशासन ने अतिक्रमण हटाया


चरागाह भूमि गैर मुमकिन बगीची पर प्रभावशाली लोगों ने अतिक्रमण किया था

ग्राम कजानीपुर स्थित राजकीय चारागाह व गैर मुमकिन बगीची की लगभग 35 बीघा भूमि को मंगलवार को अतिक्रमण मुक्त किया गया। इसके लिए कलेक्टर अंकित कुमार सिंह के निर्देश पर धर्मसिंह तहसीलदार हिंडौन व कार्यवाहक तहसीलदार श्रीमहावीरजी नियुक्त किये जाने पर धर्मसिंह तहसीलदार और श्रीमहावीरजी की ओर से उपखण्ड अधिकारी अनूप सिंह के निर्देश पर उक्त अतिक्रमण को हटाने की कार्यवाही की गयी।

गौरतलब है कि ग्राम कजानीपुर स्थित चारागाह व गैर मुमकिन बगीची की लगभग 35 बीघा भूमि पर अतिक्रमियों की ओर से अतिक्रमण किये जाने पर कलेक्टर ने प्रकरण में जांच कर आवश्यक कार्यवाही के निर्देश दिये गये। निर्देशों की पालना में उपखण्ड अधिकारी अनूप सिंह ने तहसीलदार श्रीमहावीरजी को मौका मजिस्ट्रेट नियुक्त कर अतिक्रमण हटाने के लिए निर्देशित किया गया। सीमाज्ञान व अतिक्रमण हटाने के सम्बन्ध में कार्यवाही पिछले 19 दिनों से की जा रही थी।

उक्त अतिक्रमण को उपखण्ड अधिकारी ने संज्ञान में लिये जाने पर धर्मसिंह तहसीलदार महावीरजी ने मय राजस्व व पुलिस जाब्ता की टीम के साथ मौके पर कानून व्यवस्था कायम करते हुए कजानीपुर स्थित चारागाह भूमि और गैर मुमकिन बगीची की भूमि से अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही की गयी। अतिक्रमण हटाने के दौरान तहसीलदार श्रीमहावीरजी धर्मसिंह, नायब तहसीलदार महावीर प्रसाद, पुष्पेन्द्र राजवात भूअनि, अशोक डागुर पटवारी, राजस्व दल व पुलिस जाब्ता मौके पर तैनात रहा।

मूल ऑनलाइन लेख - https://www.bhaskar.com/local/rajasthan/karauli/news/on-the-instructions-of-the-collector-the-administration-removed-the-encroachment-from-35-bighas-of-land-from-jcb-in-kajanipur-129996742.html

Tuesday, 28 June 2022

डाबला में खनन कारोबारियों के कदम का विरोध

गांव में चारागाह भूमि पर प्रशासन ने काटा रास्ता, ग्रामीणों ने की मुखालफत, एसडीएम को सौंपा ज्ञापन, ग्राम पंचायत की पाक्षिक बैठक में पूरा गांव ने एक मत होने का लिया निर्णय 

आरोप : रास्ते का फायदा दिलाने की आड़ में नेताओं ने प्रशासन से चारागाह भूमि से करवाया रास्ता सेट अपार्ट

सीकर/नीमकाथाना. खनिज संपदा का गढ़ कहलाने वाले पाटनवाटी के डाबला गांव में 12 वर्ष बाद फिर चारागाह भूमि से काटे गए रास्ते के विरोध में ग्रामीण एकजुट होने लगे हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि राजनैतिक दबाव व खनन माफियाओं को फायदा पहुंचाने के लिए प्रशासन ने चारागाह भूमि से रास्ता सेट अपार्ट कर पूरे गांव के साथ अन्याय किया है, जिसे ग्रामीण कभी नहीं मानेंगे। सोमवार को वीरचक्र विजेता जयराम सिंह के नेतृत्व में ग्रामीणों ने उपखंड अधिकारी बृजेश गुप्ता को जिला कलक्टर के नाम ज्ञापन देकर रास्ते के आदेश को फिर से वापस लेने की मांग की। ज्ञापन में बताया कि काश्तकारी अधिनियम 1955 के अनुसार चारागाह भूमि में आवंटन से पूर्व ग्राम पंचायत से सहमति प्राप्त करना आवश्यक है। प्रशासन ने मामले में चारागाह के रास्ते का सेट अपार्ट करने से पहले ग्राम पंचायत डाबला ने किसी प्रकार की सहमति नहीं दी है। बल्कि समय-समय पर चारागाह से रास्ता निकालने के विरोध में प्रस्ताव पारित किए है। गांव की चारागाह भूमि में गंगलेडा मोहल्ला अथवा बन की ढाणी के लोगों के लिए आवागमन की कोई समस्या नहीं है। ना ही इन्होंने कभी चारागाह से रास्ते की मांग की है। वहीं डाबला या आसपास के गांव के लोगों ने कभी भी चारागाह भूमि से रास्ते का इस्तेमाल नहीं किया है, ना ही उन्हें आवश्यकता है। यह रास्ता केवल कुछ खनन कारोबारी मांग कर रहे हैं, जो आदेशों का उल्लंघन।ज्ञापन देने वालों में सुनील शर्मा, मोहरचंद स्वामी, अजीत चौधरी, उद्यमी स्वामी, जयचंद धानका, अशोक कुमार, देशराज, विनोद शर्मा सहित अन्य ग्रामीण शामिल।

जल जमीन को बचाने के लिए करेंगे आंदोलन

गांव डाबला के वीरचक्र विजेता जयराम सिंह ने कहा कि ग्रामीणों ने मिलकर उपखंड अधिकारी को कलक्टर के नाम ज्ञापन दिया है कि तथ्यों पर गौर कर आदेश को वापस लेने के लिए कार्यवाही करे। साथ ही कलक्टर सहित उच्च अधिकारियों को ज्ञापन भेजकर मांग कर रहे हैं कि आदेश को वापस लिया जाए अन्यथा गांव में आक्रोश हो जाएगा। गांव में वर्ष 2011 के अंदर जो आंदोलन हुआ था उससे भी ज्यादा आंदोलन ग्रामीण जल, जंगल, जमीन को बचाने के लिए करने को मजबूर होंगे। चाहे कुछ भी हो खनन माफियाओं को चारागाह का उपयोग बिल्कुल नहीं करने देंगे, क्योंकि अगर चारागाह का उपयोग खनन माफिया वहां करता है तो गांव के हजारों पशु वहां चरते हैं, उनके लिए चारे की समस्या हो जाएगी। साथ ही जो हैवी ब्लास्टिंग की जाएगी उससे पूरे गांव के अंदर कंपन होता है। गंगलेड़ा व मीणों का मोहल्लो में ऐसी स्थिति हो जाती है कि वहां पर ग्रामीण रहने लायक नहीं रहते हैं। ग्रामीण बार-बार उच्च अधिकारियों से निवेदन कर रहे है। अधिकारियों से ये ही निवेदन है कि गांव के लोगों की सयम की परीक्षा ना ले और जीतना जल्द हो सके गैर कानूनी आदेश को वापस ले।

वर्ष 2011 में प्रशासन को 11 दिन बाद ही वापस लेना पड़ा था आदेश

गौरतलब है कि 01 मई 2011 को खनन कारोबारियों ने राजनैतिक दबाव से तत्कालीन जिला कलक्टर धर्मेन्द्र भटनागर से चारागाह से रास्ते का सेट अपार्ट (आवंटन) करवा लिया था। गांव में भारी विरोध होने से आखिर प्रशासन को 11 मई 2011 को आदेश को विड्रोल करने पर मजबूर होना पड़ा था।

आदेश वापस लेने को सही ठहराया था

वीरचक्र विजेता जयराम सिंह डाबला ने बताया कि माननीय उच्च न्यायालय खण्ड पीठ जयपुर ने भी आदेश में भी तत्कालीन कलक्टर के रास्ता काटने के आदेश को विधि विरुद्ध व आदेश को वापस लेने को सही ठहराया था। इसलिए चारागाह भूमि में से वापस रास्ता सेट अपार्ट करने में माननीय उच्च न्यायालय जयपुर के आदेशों की भी खुली अवहेलना हुई है।

आबादी के लिए मांग रहे भूमि पर काटा रास्ता

चारागाह भूमि के खसरा नंबर 1808, 1816 व 1832 में से रास्ता सेट अपार्ट कर क्षतिपूर्ति करने के लिए प्रशासन ने भूमि खसरा नंबर 1740/2 रकबा 2.17 है। किस्म बंजर में से 0.82 हैक्टेयर किस्म बंजर को चारागाह घोषित किया गया है, जबकि पंचायत डाबला ने खसरा नंबर 1740/2 में पहले ही आबादी विस्तार के लिए प्रस्ताव पास कर 4 अक्टूबर 2021 को प्रशासन गांवों के संग अभियान में मांग रख चुके हैं।

मूल ऑनलाइन लेख - https://www.patrika.com/sikar-news/opposing-the-move-of-mining-traders-in-dabla-7621153

Friday, 24 June 2022

नीमराना में चारागाह भूमि पर अतिक्रमण का विरोध

 

राजस्थान न्यूज डेस्क, निमराना पंचायत समिति की ग्राम पंचायत बिचपुरी के युवकों ने बिल्डरों का विरोध किया। ग्रामीण रविदत्त ने जानकारी देते हुए बताया कि बिचपुरी ग्राम पंचायत मार्ग के पास गौचर की जमीन पर अवैध रूप से अतिक्रमण कर त्रेहान ग्रुप द्वारा गेट बनाने का कार्य किया जा रहा है। जबकि पिपली गांव के राजस्व में बिल्डरों ने जमीन खरीदी है।

इस संबंध में नीमरा के एसडीएम को ज्ञापन दिया गया। जिस पर एसडीएम मुकुट सिंह ने बिल्डरों को काम करने से रोक दिया। लेकिन बिल्डरों द्वारा परिचालन फिर से शुरू कर दिया गया।

अनुमंडल प्रशासन और पटवारी ने 3 में से 1 खसरा नापा है। ग्रामीणों ने ओरी का हवाला देते हुए अनुमंडल पदाधिकारी मुकुट सिंह को सूचना दी। अनुमंडल पदाधिकारी ने अधिकारियों से समस्या के समाधान को लेकर बात की।

ग्रामीणों ने मामले की जानकारी जिला कलेक्टर अलवर को भी दी। लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। जिससे ग्रामीणों में आक्रोश देखा जा रहा है। ग्रामीणों ने बिल्डरों का विरोध किया।

धरना के दौरान कृपाल यादव, सचिन, दीपक, भीम सिंह, रुद्रम, राकेश, अजय, सतीश, बलवंत थेकेदार, रतिपाल, बिजेंद्र, प्रेमपाल, अमित और नवुक मंडल के अन्य सदस्य और ग्रामीण मौजूद थे।

अलवर न्यूज डेस्क!!!

मूल ऑनलाइन लेख - https://samacharnama.com/city/alwar/Protest-against-encroachment-on-pasture-land-in-Alwar/cid7906647.htm

Wednesday, 22 June 2022

सपोटरा: सेंगरपुरा में चारागाह और खातेदारी जमीन से अतिक्रमण हटाने का ज्ञापन सौंपा गया

ग्रामीणों ने दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करते हुए अतिक्रमण हटाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि चारागाह इस जमीन पर अतिक्रमण कारियों द्वारा अतिक्रमण करने से गांव में टकराव की स्थिति बन जाती है।


Sapotra: सपोटरा उपखंड की ग्राम पंचायत लूलौज के गांव सेंगरपुरा के ग्रामीणों का एक शिष्टमंडल उपखंड अधिकारी अनुज भारद्वाज से मिला तथा खसरा नं. 729 से सटी चारागाह भूमि पर दबंगों द्वारा किए गए अवैध अतिक्रमण और फसल बुवाई को हटाने का ज्ञापन सौंपा गया।

ग्रामीण राधेलाल, भरतलाल, ऋषि, मुनेश, धनराज, रामचरण,प्रहलाद मीणा ने बताया कि 20 जून की मध्यरात्रि को कुछ अज्ञात दबंगों द्वारा गैर कानूनी ढंग से तीन ट्रैक्टरों से चारागाह की 10 बीघा भूमि को समतल कर खरीफ फसल की बुवाई कर दी गई। मध्यरात्रि को आबादी क्षेत्र से दूर होने के कारण गांव के किसी व्यक्ति को भनक नही लगी जबकि चारागाह भूमि में ग्राम सेंगरपुरा और लूलौज की झोंपड़ी (पगपीटा) के बीच संपर्क सड़क हरिया का मंदिर पर स्थित है। 

दूसरी ओर अतिक्रमणकारियों द्वारा उनकी खातेदारी जमीन खसरा नं. 729 पर भी जबरन ट्रैक्टर चलाकर फसल बुवाई कर दी गई। कुछ वर्षों पूर्व भी दबंगों द्वारा चारागाह भूमि पर कब्जा करने की कोशिश की गई थी लेकिन ग्रामीणों के विरोध को देखते हुए उनकी योजना सफल नहीं हो सकी है। उन्होने बताया कि चारागाह भूमि पर अवैध कब्जा और फसल बुवाई करने से गांव में असंतोष और टकराव की स्थिति बनी हुई है. उन्होंने दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करते हुए अतिक्रमण हटाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि चारागाह इस जमीन पर अतिक्रमणकारियों द्वारा अतिक्रमण करने से गांव में टकराव की स्थिति बन जाती है।

ग्रामीण अपने पशुओं को चराने के लिए इधर-उधर भटकते हैं। साथ ही खातेदारी की भूमि पर भी अतिक्रमण कारियों द्वारा अतिक्रमण कर लिया गया है। ऐसे में आज उपखंड अधिकारी से मिलकर उन्होंने चारागाह और खातेदारी की भूमि से अतिक्रमण हटाने की मांग की है। उपखंड अधिकारी द्वारा मामले की जांच करा जल्द की सकारात्मक कार्रवाई का आश्वासन दिया है।

मूल ऑनलाइन लेख - https://zeenews.india.com/hindi/india/rajasthan/karauli/sapotra-memorandum-handed-over-to-remove-encroachment-from-pasture-and-khetdari-land-in-sengarpura/1229196

भूमि आवंटित: सार्वजनिक प्रयोजन और भवन निर्माण के लिए भूमि आवंटित

उप जिला कलेक्टर बौंली की अभिशंषा पर ग्राम मित्रपुरा की 0.24 हेक्टेयर चरागाह भूमि का राजस्थान काश्तकारी (सरकारी) नियम, 1955 के नियम 7 के तहत वर्गीकरण परिवर्तित करते हुए राजस्थान भू-राजस्व नियम, 1963 के अन्तर्गत पटवार विश्रांति भवन के लिए राजस्व विभाग को शर्तों एवं निबंधनों पर निशुल्क आवंटित की है। इसकी क्षतिपूर्ति के लिए ग्राम जैतपुरा के खसरा नम्बर 666 रकबा 0.24 हेक्टेयर भूमि आरक्षित की है।

इसी प्रकार ग्राम बास टोरडा की 0.30 हेक्टेयर चरागाह भूमि राजकीय माध्यमिक विद्यालय बास टोरड़ा के भवन एवं खेल मैदान के लिए शिक्षा विभाग को शर्तों एवं निबंधनों पर निशुल्क आवंटित की है। इसकी क्षतिपूर्ति के लिए ग्राम बास टोरडा की 0.30 हैक्टेयर भूमि चारागाह के लिए आरक्षित की है तथा ग्राम मित्रपुरा की 0.50 हेक्टेयर चरागाह भूमि पुलिस थाना मित्रपुरा के प्रशासनिक भवन व आवास निर्माण के लिए पुलिस विभाग शर्तों एवं निबंधनों पर निशुल्क आवंटित की है।

इसकी क्षतिपूर्ति के लिए ग्राम रूंगटी की 333/0.46 हैक्टेयर सिवायचक भूमि आरक्षित की है तथा ग्राम बोरदा की 0.10 हेक्टेयर भूमि राजस्थान काश्तकारी (सरकार) नियम, 1955 के नियम 7 के तहत वर्गीकरण परिवर्तित करते हुए राजस्थान भू-राजस्व नियम, 1963 के अन्तर्गत ईसरदा दौसा पेयजल परियोजना के तहत उच्च जलाशय निर्माण के लिए जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग को शर्तों एवं निबंधनों पर निशुल्क आवंटित की है। चरागाह भूमि की क्षतिपूर्ति के लिए बोरदा की 0.10 हेक्टेयर सिवायचक बंजर भूमि आरक्षित की है।

मूल ऑनलाइन लेख - https://www.bhaskar.com/local/rajasthan/sawai-madhopur/news/land-allotted-for-public-purpose-and-building-construction-129959453.html

Tuesday, 21 June 2022

अतिक्रमण कारियों ने लील लिया तालाब!: अतिक्रमण की वजह से भराव क्षमता हुई कम, अब प्रशासन करवाएगा पैमाइश


झालरापाटन का रियासत कालीन तालाब मूंडलिया खेड़ी तालाब पूरी तरह से सूख गया है। रियासत काल में इस तालाब का निर्माण नगर को जलापूर्ति के साथ ही जानवरों को पेयजल उपलब्ध कराने, भूमिगत जल स्तर को सुधारने के कराया गया था।

कुछ साल पहले तक वर्ष पर्यंत यह तालाब जल से लबालब रहता था और हजारों लोगों को पानी की समस्या से दूर रखता था, लेकिन पिछले कुछ सालों से यहां हो रहे अतिक्रमण और अवैध जल दोहन से अब यह तालाब गर्मी की शुरुआत में ही सूख जाता है। पहले तो मुंह दिखाई के लिए प्रशासन की ओर से अवैध जल दोहन को रोकने के लिए कई बार कार्रवाई भी की जाती थी, लेकिन कई सालों से क्षेत्र में अवैध जल दोहन करने वालों पर कोई कार्यवाही नहीं होने के कारण इनके हौसले बुलंद है।

इतना ही नहीं तालाब में अतिक्रमण करने की होड़ मची हुई है। तालाब के आसपास की कई बीघा जमीन पर लोग अवैध खेती करते हैं। इसके लिए वे तालाब से ही पानी लेते हैं। नतीजा यह है कि तालाब में अब पानी कुछ गड्ढों में ही बाकी बचा है।

खुदाई की है दरकार

16 फीट भराव क्षमता वाले इस तालाब में आधी से अधिक गहराई तक मिट्टी भर गई है। जिसके कारण पानी के भराव की क्षमता कम हो गई है। तालाब की जमीन पर आसपास के लोग अतिक्रमण कर खेती कर रहे हैं। जिससे इसका पेटा भी कम हो गया है।

इन दिनों झालरापाटन की चंद्रभागा नदी के जीर्णोद्धार कार्य की योजना बनाई जा रही है अगर इसके साथ ही चंद्रभागा के उद्गम स्थल इस तालाब की खुदाई कराई जाना भी जरूरी है। अभी यह तालाब पूरी तरह से खाली हो चुका है। यदि प्रशासन चाहे तो किसानों को अपने संसाधन से मिट्टी खोदकर ले जाने की इजाजत देकर बिना किसी खर्चे के भी तालाब की खुदाई करवा सकता है।

अतिक्रमण कारियों के खिलाफ होगी कार्रवाई

झालरापाटन के तहसीलदार राजेंद्र कुमार मीणा का कहना है कि मुंडलिया खेड़ी तालाब की जमीन पर अतिक्रमण करने वालों को नोटिस जारी किए गए हैं। इसकी पैमाइश भी करवाई जाएगी।

मूल ऑनलाइन लेख - https://www.bhaskar.com/local/rajasthan/jhalawar/jhalrapatan/news/filling-capacity-reduced-due-to-encroachment-now-the-administration-will-get-the-metering-done-129957794.html

Sunday, 19 June 2022

भेदभाव का आरोप: टीटोली टोल प्लाजा पर अतिक्रमण हटाने में प्रशासन पर भेदभाव का आरोप


ग्रामीणों के आक्रोश के बावजूद टिनशैड और चबूतरे हटाए

नेशनल हाईवे 11 स्थित टीटोली टोल प्लाजा के समीप हो रहे अतिक्रमण को हटाने के दौरान आखिर गरीबों पर ही प्रशासन का बुलडोजर चला था। जबकि, वही पेट्रोल पंप संचालक के अतिक्रमण को हटाने में प्रशासन ने 7 दिन का समय देते हुए करीब 1 माह बाद भी अतिक्रमण नहीं हटाया। जिसे लेकर ग्रामीणों ने एनएचएआई के अधिकारियों सहित प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी कर विरोध जताया। टोल के समीप पेट्रोल पंप दुकानों के आगे लगे क्षेत्रों से अतिक्रमण होने से टोल प्लाजा के समीप टोल शुरू होने के बाद से ही स्टैटिक वे ब्रिज निर्माण का कार्य शुरू नहीं हो पाया है। साथ ही दो लाइने बंद होने के कारण वाहन चालकों को परेशानी हो रही थी।

इसे लेकर प्रशासन व एनएचआई के अधिकारियों ने 17 मई 2022 को अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू की थी। उपखंड अधिकारी के निर्देशन पर तहसीलदार नांगल राजावतान रामस्वरूप शर्मा ने भारी पुलिस जाब्ते के साथ पेट्रोल पंप के सामने स्टैटिक वे निर्माण की भुमि पर से अतिक्रमण हटाकर कांटे निर्माण के लिए पीएनसी के अधिकारियों से जेसीबी मशीन लगाकर खुदाई करवा दी थी। साथ ही पेट्रोल पंप के आसपास व सामने खड़ी ठेले व दुकान खोलकर अपना जीवन यापन कर रहे लोगों के चबूतरे, टीन शैड व थडियों को हठाकर अतिक्रमण ध्वस्त करा दिया ।

ग्रामीण लालाराम मीणा, बाबूलाल मीणा, राम खिलाड़ी मीणा, सीताराम मीणा, कमलेश मीणा, मुकेश कुमार मीणा सहित अनेकों ग्रामीणों ने एनएचएआई के पीडी पर पेट्रोल पंप संचालक से लाखों रुपए लेने के आरोप की शिकायत भी की है। टोल प्लाजा के समीप संचालित इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड जयपुर के नाम के नाम आवंटित मैसर्स पिंटू फिलिंग स्टेशन की लीज अवधि 2/8/2020 को ही समाप्त हो चुकी है,उसके बाद भी अधिकारियों व प्रशासन की सांठगांठ के चलते 2 वर्षों से बिना बीज के पेट्रोल पंप अवैध रूप से संचालित हो रहा है। जिससे सरकार को लाखों रुपए की राजस्व की चपत लग रही है। साथ ही प्रशासन के अधिकारियों की कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं।

नांगल राजावतान तहसीलदार शिवदयाल शर्मा का कहना है कि टीटोली टोल प्लाजा के समीप संचालित मैं पिंटू फीलिंग सर्विस स्टेशन चिल्ली जल्दी 2 अगस्त 2020 को समाप्त हो चुकी है। संचालक द्वारा लीज अवधि नहीं बढ़वाई गई है। खसरा नंबर 2/2 पर किए गए अतिक्रमण को चिन्हित कर हटाया गया था, संचालक द्वारा 7 दिन की मोहलत चाही गई थी लेकिन एक माह बीत जाने के बाद भी संचालक द्वारा अतिक्रमण नहीं हटाया जा रहा है। अवैध रूप से चल रहे पेट्रोल पंप संचालक के खिलाफ कार्रवाई के लिए पत्र बनाकर जिला कलेक्टर को भिजवाया जा चुका है।

टीटोली टोल प्लाजा के समीप स्टैटिक विपरीत निर्माण की भूमि पर हुए अतिक्रमण को 17 मई 2022 को पुलिस जाब्ते के साथ तहसीलदार के निर्देशन में अतिक्रमण हटवाने के निर्देश दिए गए थे राजस्व टीम द्वारा अतिक्रमण हटाया जा रहा था लेकिन स्टॉक होने की बात कहकर संचालक द्वारा 7 दिन का समय मागा गया था। एनएचएआई के अधिकारियों के कहने पर ही 7 दिन का समय संचालक को दिया गया था।

एनएचएआई के पीडी सहीराम का कहना है कि इस संबंध में मेरा कोई लेना देना नहीं है। मैंने कोई समय नहीं दिया था, उपखंड अधिकारी या तहसीलदार से ही जानकारी लें। आरोप के सवाल का जवाब देने से पहले ही कॉल काट दी।

मूल ऑनलाइन लेख - https://www.bhaskar.com/local/rajasthan/dausa/news/administration-accused-of-discrimination-in-removing-encroachment-on-titoli-toll-plaza-129952747.html

Saturday, 18 June 2022

बाली में नापो जल बचाओ कल अभियान के अंतर्गत, भूमिगत जल स्तर का किया जा रहा मापन

पाली के बाली उपखंड के सभी ग्राम पंचायतों में नापो जल, बचाओ कल के तहत वेल मोनिटरिंग का कार्य किया जा रहा. प्रकृति कार्यशाला के कार्यक्रम समन्वयक गणपत लाल प्रजापत और देसूरी विकाशखण्ड के फील्ड प्रशिक्षक प्रहलाद सिंह कोट ने बताया कि हमारी 80% पानी की जरूरते भूजल से पूरी होती है.

चारागाह भूमि से रास्ता निकालने का निर्णय वापस नहीं लिया तो आंदोलन करेंगे ग्रामीण

नीमकाथाना/मावंडा. राजस्थान के सीकर जिला नीमकाथाना इलाके के डाबला गांव में अवैध ब्लास्टिंग व माइनिंग के बाद चर्चा में रहा डाबला गांव फिर 11 वर्ष बाद सुर्खियों में आने लगा है। माफियाओं को फायदा पहुंचाने के लिए चारागाह भूमि से रास्ता काटने के आदेश पर प्रशासन व ग्रामीण आमने सामने की तैयारी में है।


नीमकाथाना/मावंडा. राजस्थान के सीकर जिला नीमकाथाना इलाके के डाबला गांव में अवैध ब्लास्टिंग व माइनिंग के बाद चर्चा में रहा डाबला गांव फिर 11 वर्ष बाद सुर्खियों में आने लगा है। माफियाओं को फायदा पहुंचाने के लिए चारागाह भूमि से रास्ता काटने के आदेश पर प्रशासन व ग्रामीण आमने सामने की तैयारी में है। गौरतलब है कि जिला कलक्टर ने एसडीएम की रिपोर्ट पर चारागाह भूमि से 30 फीट चौड़ा रास्ते के लिए सेट अपार्ट के आदेश जारी किए है। जैसे ही चारागाह भूमि से रास्ता काटने की ग्रामीणों को भनक लगी तो गांव में विरोध के शुर शुरू होने लग गए। शुक्रवार को गांव डाबला के ग्रामीण 11 वर्ष पहले आंदोलन किया था उसी जगह एकत्रित होकर चर्चा की तथा रास्ता काटने के विरोध में एकमत होने का निर्णया लिया। ग्रामीणों की प्रशासन से मांग है कि काटे गए रास्ते के आदेश को 3 दिन में वापस नहीं लिया गया तो आंदोलन किया जाएगा। बताया जा रहा है कि डाबला में वर्तमान में 54 लीज स्थित है। जिनमें 3 लीज का कुछ दिनों पहले ही एग्रीमेंट किया गया है। सूत्रों के अनुसार 5 लीज इसी को लेकर पेंडिंग चल रही है तथा 5 लीज कोर्ट अपील में है। इन लीज में स्थानीय व बाहर के जनप्रतिनिधियों के रिश्तेदारों की भी शामिल होना बताया जा रहा है। ग्रामीणों ने कहा कि चारागाह भूमि आबादी से दूरी है। रास्ता केवल माफियाओं के वाहनों के परिवहन के अलावा ग्रामीणों के उपयोग में नहीं आने वाला है। ऐसे में सीधा सवाल खड़ा हो रहा है कि प्रशासन ग्रामीणों को छोड़ केवल माफियाओं का साथ दे रहा है।

मूल ऑनलाइन लेख - https://www.patrika.com/sikar-news/villagers-will-protest-against-cutting-the-road-7599796

Wednesday, 15 June 2022

अतिक्रमण: आबादी भूमि पर अतिक्रमण, नोटिस देने के बाद मिलीभगत से कर रहा निर्माण कार्य

गोविंदगढ़ पंचायत समिति की नवसृजित ग्राम पंचायत कंवरपुरा में स्थानीय प्रशासन व कुछ रसूखदारों की मिलीभगत से गांव में आबादी भूमि में अतिक्रमियों को सह देकर अतिक्रमण करवाया जा रहा है। उक्त मामले की स्थानीय प्रशासन के जिम्मेदारों को पूरी जानकारी होने के बाद भी प्रशासन महज नोटिस थमाकर इतिश्री कर रहा है।

स्थानीय प्रशासन को अतिक्रमण के बारे में शिकायत की गई तो सरपंच ने फोन रिसीव नहीं किया तथा वीडीओ ने अतिक्रमण को पूरी तरह से अवैध बताया तथा उसको नोटिस देने की बात कही। बीडीओ ने बताया कि चौकली का बास कस्बे में सुरेश कुमार शर्मा पुत्र गोपाल लाल शर्मा के द्वारा अतिक्रमण किया जा रहा था, उसकी शिकायत ग्रामीणों के द्वारा 5 जून को की गई थी, इसके बाद 6 जून को पंचायत प्रशासन ने मौका निरीक्षण कर मौके पर हो रहे निर्माण कार्य का अवलोकन करके देखा तो अतिक्रमण की श्रेणी में आ रहा था। उक्त व्यक्ति को पंचायत से प्रस्ताव लेकर नोटिस थमाया गया था। अतिक्रमी के द्वारा नोटिस देने के बाद भी लगातार अतिक्रमण के द्वारा निर्माण कार्य करने पर कार्य नहीं रोकने से ग्रामीणों ने स्थानीय प्रशासन पर मिलीभगत का आरोप लगाया।

गोविंदगढ़ पंचायत समिति विकास अधिकारी भागीरथ मल मीणा ने बताया कि नोटिस देने के बाद भी अतिक्रमण किया जा रहा है तो मैं अभी दिखवाता हूं। कंवरपुरा पंचायत के ग्राम विकास अधिकारी जितेंद्र सिंह ने बताया कि मौके पर हो रहे निर्माण कार्य की शिकायत मिलने पर 6 जून को मौका रिपोर्ट देखकर मामला अतिक्रमण का था। अतिक्रमण को चेतावनी देते हुए पंचायत से प्रस्ताव लेकर काम बंद करने व आगे काम न करने का नोटिस थमाया था। फिर से काम कर रहा है तो गलत है मैं अभी देखता हूं।

मूल ऑनलाइन लेख - https://www.bhaskar.com/local/rajasthan/jaipur/chomu/news/encroachment-on-abadi-land-doing-construction-work-in-connivance-after-giving-notice-129936406.html


खनन माफिया को फायदा पहुंंचाने के लिए चारागाह भूमि से रास्ता काटने की तैयारी में प्रशासन

ग्रामीणों का विरोध किसी भी सूरत में नहीं काटने देंगे रास्ता, गांव डाबला के ग्रामीणों ने कलक्टर को दिया ज्ञापन


नीमकाथाना/मावंडा. खनन माफियाओं को फायदा पहुंचाने के लिए गौचर भूमि से प्रशासन रास्ता काटने की तैयारी कर रहा है, लेकिन रास्ता कटने से पहले ही गांव में विरोध शुरू हो गया है। मंगलवार को जयराम सिंह के नेतृत्व में ग्रामीणों ने कलक्टर को ज्ञापन देकर गौचर भूमि से खननकर्ताओं के लिए रास्ता काटने का विरोध जताया है। ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम पंचायत डाबला के चारागाह भूमि के खसरा नम्बर 1808, 1816 व 1832 में से खान एवं क्रेशर मालिक एवं कुछ अवैध खननकर्ता रास्ता चाहते हैं। एक मई 2011 को क्रेशर मालिकों ने तात्कालीन कलक्टर धर्मेन्द्र भटनागर को मिथ्या तथ्य पेश कर चारागाह भूमि में से रास्ता कटवा लिया था। उस समय ग्रामीणों को इसकी जानकारी होने पर इसके खिलाफ आंदोलन किया गया। आखिरकार 11 मई 2011 को कलक्टर ने एक मई 2011 के रास्ते काटने के आदेश को प्रत्याहारित विड्रोल कर लिया था। 12 मई 2011 के प्र.स. 2 के माध्यम से भी समस्त गांव की जनता ने चारागाह भूमि से रास्ता नहीं देने का प्रस्ताव पास कर चुकी है। इसके साथ ही गौचर भूमि से जब- जब रास्ता काटने के लिए गये प्रस्ताव के ग्राम पंचायत विरुद्ध है। ग्रामीणों की प्रशासन से मांग है कि विचाराधीन रास्ता काटने की प्रक्रिया या रास्ता काट दिया हो तो उसे जनहित में निरस्त किया जाए।

ग्रामीणों को नहीं चाहिए रास्ता

ग्रामीणों ने बताया कि गांव डाबला के गंगलेडा मोहल्ले से रेल्वे स्टेशन तक जाने के लिए पक्की रोड है। उन्हें चारागाह भूमि से रास्ते की कोई जरूरत नहीं रास्ता केवल खनन व क्रेशर मालिकों को फायदा पहुंचाने के लिए रास्ता काटने की तैयारी चल रही है। खनन माफिया राजस्व अधिकारियों से मिली भगत कर व तथ्यों को छुपाकर चारागाह भूमि खसरा नंबर 1808, 1816 व 1832 में रास्ता चाहते है जो न्यायसंगत एवं जनहित में नहीं है। न ही ग्राम पंचायत डाबला और आसपास के ग्रामीणों को इसकी आवश्यकता है।

होगा पर्यावरण को नुकसान

चारागाह भूमि में से यदि रास्ता काट दिया जाता है तो पर्यावरण को इसका भारी नुकसान होगा। वहीं वन विभाग ने 5 साल तक चारागाह भूमि में जो पेड पौधे लगाये थे उनको भी नुकसान होगा। गांव के हजारों भेड़ बकरियां और गाय, भैस इस चारागाह में विचरण करते हैं। उनके लिए चारे की समस्या उत्पन्न हो जायेगी।

…तो पनपेगा गैंगवार

अवैध खनन पर वर्चस्व की लड़ाई में वर्ष 2011-12 में गांव आपसी गैंगवार शुरू हो गई थी। इससे हर रोज फायरिंग जैसी घटनाएं होती थी। ग्रामीणों की मांग कि प्रशासन ग्रामीणों का साथ देंगे तो लोगों का जीवन दूभर नहीं होगा।

रास्ते काटने को लेकर प्रशासन ने ग्राम पंचायत से एनओसी मांगी थी। जिस पर सर्वसम्मति से नहीं देने का निर्णय लिया गया। इस रास्ते का वर्ष 2011 में भी मामला चला था। उस समय भी ग्रामीणों ने विरोध किया था।

सागरमल, सरपंच, ग्राम पंचायत, डाबला

प्रशासन चारागाह भूमि से रास्ता काटकर खननकार्ताओं को फायदा पहुंचाने की तैयारी में है। रास्ते को लेकर पूरा गांव विरोध में है। किसी भी सूरत में रास्ता नहीं काटने देंगे। वर्ष 2011 में भी रास्ता काटने पर विरोध किया गया था। अभी भी सर्वसम्मति से ग्राम पंचायत ने एनओसी देने से मना कर दिया है।

जयराम सिंह, ग्रामीण, डाबला

मूल ऑनलाइन लेख - https://www.patrika.com/sikar-news/administration-in-preparation-for-cutting-the-path-from-pasture-land-7593716

Monday, 13 June 2022

नदी-नालों से अतिक्रमण हटाएगी नगर परिषद: अतिक्रमियों को अतिक्रमण हटाने के लिए दी चेतावनी, 2 दिन का दिया समय


प्रदेश में कई जगहों पर प्री मानसून की बारिश शुरू हो गई है। बारिश के मौसम में झालावाड़ में बाढ़ जैसे हालात नहीं हो इसके लिए झालावाड़ नगर परिषद नालों की सफाई करवाएगी। साथ ही अवैध अतिक्रमण और पानी निकासी में बाधक अतिक्रमण को हटाए जाने की कार्रवाई भी करेगी। इसके लिए नगर परिषद ने मुनादी करवाकर अतिक्रमियों को 2 दिन का समय दिया है।

झालावाड़ शहर में नदी-नालों में पानी की निकासी वाली जगहों पर हो रखे अतिक्रमण को नगर परिषद ने चिह्नित किया है और शहर भर में मुनादी कराई जा रही है। नगर परिषद ने अतिक्रमियों को खुद अतिक्रमण के लिए 2 दिन का समय दिया है। शहर के मदारी खा तालाब और नया तालाब के किनारे तक कई मकान बन गए हैं। बारिश में इन तालाबों में पानी बढ़ते ही यहां के लोगों को मकान खाली करना पड़ता है। मकानों में पानी भरने से कई बार हादसे की आशंका भी बनी रहती है। इसी प्रकार शहर के चंदा महाराज की पुलिया के आसपास भी नाले पर अतिक्रमण होने से बारिश के दौरान हालात बिगड़ जाते है।

नगर परिषद आयुक्त अशोक शर्मा ने बताया कि अतिक्रमियों को अतिक्रमण हटाने के लिए चेतावनी दी है ताकि उनका कोई नुकसान नहीं हो। यदि नगर परिषद अपने स्तर पर अतिक्रमण हटाएगी तो इस दौरान होने वाले खर्च को भी अतिक्रमियों से वसूला जाएगा और कार्रवाई भी की जाएगी।

मूल ऑनलाइन लेख - https://www.bhaskar.com/local/rajasthan/jhalawar/news/jhalawar-city-council-will-remove-encroachment-from-rivers-and-streams-129928891.html

Wednesday, 8 June 2022

पब्लिक लैंड प्रोटेक्शन सेल: आम लोगों के लिए एक नई उम्मीद

विवादों के निबटान और अतिक्रमण का शिकार हुए ज़मीनों को वापस समुदायों को दिलवाने के अलावा पब्लिक लैंड प्रोटेक्शन सेल सार्वजनिक भूमियों के संचालन और प्रबंधन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

पूजा चंद्रन, सुब्रता सिंह

June 8, 2022

सार्वजनिक भूमि ऐसे प्राकृतिक संसाधन होते हैं जिनका इस्तेमाल समुदाय के लोग सार्वजनिक हितों के लिए करते हैं। इनमें जंगल, चारागाह, तालाब और कूड़ा इकट्ठा (वेस्टलैंड) करने वाली जगहें होती हैं। ये ग़ैर-नक़द, ग़ैर-बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं के लिए उपलब्ध संसाधनों का आधार होती हैं। ऐसी ज़मीनें स्थानीय लोगों के ईंधन, पानी, तेल, मछली, जड़ी-बूटी, विभिन्न प्रकार की फल-सब्ज़ियों के अलावा उनके पशुओं के लिए चारा आदि की ज़रूरतें पूरी करती हैं। विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि ग्रामीण घरों की कुल आय में आम ज़मीन से होने वाली आय का योगदान 12 से 23 प्रतिशत के बीच होता है। कार्बन के क्षेत्र में भी इन ज़मीनों का योगदान होता है और ये जैव विविधता के भंडार और देशी ज्ञान की निशानियों में बदल जाती हैं।

भारत में सार्वजनिक भूमि के क्षेत्रफल में लगातार कमी आ रही है। 2005 से 2015 के बीच अकेले चारागाह के रूप में प्रयुक्त होने वाली ज़मीन पहले से 31 प्रतिशत कम हुई है। औद्योगीकरण की तेज गति से इन जमीनों पर पड़ने वाला बोझ बढ़ा है। लोग अब इनका उपयोग घर-मकान बनाने के साथ-साथ खेती में करने लगे हैं। इसके अलावा ‘उर्वर’ ज़मीनों की गहरी खुदाई से आसपास का परिदृश्य भी तेज़ी से बदल रहा है।इन सबमें एक नई जुड़ी चीज़ है भारत का स्वच्छ ऊर्जा संक्रांति (क्लीन एनर्जी ट्रैंज़िशन)। 


अस्पष्ट सीमाएँ महँगी और अपूर्ण प्रवर्तन की स्थिति पैदा करती हैं और भूमि और सम्पत्ति क़ानूनों में अतिच्छादन इस समस्या को कई गुना और अधिक बढ़ा देती है। | चित्र साभार: फ़ाउंडेशन फ़ॉर एकोलॉजिकल सिक्योरिटी (एफ़ईएस)

निजी ज़मीनों की तुलना में सार्वजनिक ज़मीनों का क़ानूनी रूप से मान्यता प्राप्त होने की सम्भावना कम होती है। इसलिए सार्वजनिक जगहों का अतिक्रमण और उस पर निजी स्वामित्व का दावा करना बहुत आसान हो जाता है। अस्पष्ट सीमाएँ महँगी और अपूर्ण प्रवर्तन की स्थिति पैदा करती हैं और भूमि और सम्पत्ति क़ानूनों में अतिच्छादन इस समस्या को कई गुना और अधिक बढ़ा देती है। इस समस्या से निपटने के लिए 28 जनवरी 2011 को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में सार्वजनिक संसाधनों के संरक्षण के लिए एक व्यवस्था को सक्रिय बनाने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए एक ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाया। जगपाल सिंह और अन्य बनाम पंजाब सरकार और अन्य नाम वाले मामले में कोर्ट ने सार्वजनिक ज़मीनों के सामाजिक-आर्थिक महत्व को मान्यता देते हुए राज्य सरकारों को अतिक्रमण हटाने के लिए योजनाएँ तैयार करने का निर्देश दिया। उसके बाद गाँव के सार्वजनिक उपयोग के लिए ऐसी सभी ज़मीनों को ग्राम पंचायत को वापस करना था।

इस फ़ैसले से ग्रामीण समुदायों में अपनी उन सभी ज़मीनों को वापस पाने की आशा जाग गई जो अतिक्रमण के कारण उनसे छिन गई थीं। इसके अलावा इस फ़ैसले ने मनरेगा जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से सार्वजनिक संसाधनों की सुरक्षा, प्रबंधन और बहाली के लिए राज्य सरकारों को तंत्र विकसित करने के लिए भी प्रेरित किया। इसने लोअर कोर्ट के लिए देश में सार्वजनिक ज़मीनों पर न्यायशास्त्र विकसित करने के शुरुआती बिंदु के रूप में भी काम किया है।

पब्लिक लैंड प्रोटेक्शन सेल क्या हैं?

राजस्थान और मध्य प्रदेश में कुल भूमि का क्रमश: 36 प्रतिशत और 37 प्रतिशत हिस्सा सार्वजनिक भूमि का हिस्सा है। ज़मीन के ये टुकड़े लाखों ग्रामीणों के आत्म-सम्मान, सुरक्षा और आजीविका का साधन हैं। राज्य की अदालतों में सरकारों के अतिक्रमण के ख़िलाफ़ दायर की जाने वाली जन हित याचिकाओं का अम्बार है। इसे ध्यान में रख कर और जगपाल सिंह फ़ैसले के नक़्शे कदम पर चलते हुए 2019 में राजस्थान हाई कोर्ट ने और 2021 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अपनी अपनी राज्य सरकारों को पब्लिक लैंड प्रोटेक्शन सेल (पीएलपीसी) नाम के स्थाई संस्थानों की स्थापना के निर्देश दिए। इन प्रकोष्ठों में ग्रामीण इलाक़ों में किए गए सार्वजनिक भूमि अतिक्रमण से जुड़ी शिकायतें आती हैं और यह क़ानूनी प्रक्रियाओं के तहत इन मामलों को निबटाकर उन्हें ग्राम सभा या ग्राम पंचायत को वापस लौटाते है।

आज की तारीख़ में दोनों राज्यों के प्रत्येक ज़िले में दो पीएलपीसी की स्थापना हो चुकी है जिसका प्रमुख ज़िले का कलेक्टर होता है। भारत के दो तिहाई से अधिक अदालती मुक़दमे ज़मीन या सम्पत्ति से जुड़े होते हैं और इनमें ज़्यादातर मामले सार्वजनिक भूमि के हैं। ऐसी स्थिति में पीएलपीसी जैसे संस्थानों की स्थापना इन मामलों में एक स्वागत योग्य हस्तक्षेप है। पीएलपीसी में समुदाय के लोग सीधे तौर पर अपनी सार्वजनिक ज़मीन के मामले का बचाव कर सकते हैं और ज़मीन से जुड़े नियमों और विधानों की जटिलता से बच सकते हैं। इससे पेशेवर क़ानूनी सहायता लेने या अदालत के शुल्क का भुगतान करने में कमी आती है। जिसके कारण आबादी का एक बड़ा हिस्सा काफ़ी कम खर्च में अपने क़ानूनी संसाधनों को वापस हासिल कर लेता है। मुद्दों से निबटने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था को संस्थागत करने से बहुत जटिल और खर्चीले अदालती तामझाम से बचा जा सकता है और साथ ही न्यायालय के कार्यभार को कम किया जा सकता है। वर्तमान में उच्च न्यायालय केवल उन मामलों की सुनवाई करता है जिसमें पीएलपीसी किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करते हैं; एक प्रहरी की भूमिका में रहकर न्यायिक प्रक्रियाओं को नियमों का पालन करने और इन प्रकोष्ठों की जवाबदेही सुनिश्चित करने की अनुमति मिलती है। 

पीएलपीसी को और अधिक असरदार कैसे बनाया जा सकता है?अपनी शुरुआती अवस्था में होने के बावजूद पीएलपीसी क़ानूनी जानकारियों को लोकतांत्रिक बनाने, न्याय दिलवाने और अतिक्रमण के मामलों का तेज़ी से निवारण करने में सहायक साबित हो रहे हैं। हालाँकि अतिक्रमण के मामलों के निबटारों के अलावा पीएलपीसी सार्वजनिक भूमि के प्रबंधन और संचालन में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं इसलिए इस विषय पर गम्भीरता से सोचने की ज़रूरत है।

‘ज़मीन’ राज्यों के दायरे में आने वाला विषय है। किसी भी सार्वजनिक भूमि पर जब तक पहले से किसी सरकारी विभाग विशेष (जैसे कि वन विभाग) का मालिकाना हक़ नहीं होता है तब तक क़ानूनी रूप से ज़मीन के उस टुकड़े को ‘सरकारी ज़मीन’ के उपवर्ग (सबसेट) के दायरे में ही रखा जाता है। भूमि रिकॉर्ड के सर्वेक्षण, रिकॉर्ड के रखरखाव की ज़िम्मेदारी भी राज्य के राजस्व विभागों की होती है। इसके साथ ही, पंचायती राज व्यवस्था ग्राम पंचायतों को गाँव की आम भूमि के प्रबंधन और संरक्षण का दायित्व सौंपती है।

हालाँकि, अनुभवों से यह स्पष्ट होता है कि जहां स्थानीय स्तर पर पहुँच और उपयोग के अधिकारों को मान्यता दी जा चुकी है वहीं इन्हें औपचारिक रूप से दर्ज नहीं किया जाता है। स्थाई दस्तावेज़ों की सूची में आने के बाद भी आम ज़मीनों से जुड़ी जानकारियाँ नियमित रूप से अपडेट नहीं की जाती हैं। उनकी सीमाओं की स्थानिक पहचान भी ग़ायब हो चुकी हैं। इस तरह की जानकारी सम्बन्धी सूचनाओं की कमी से समुदायों का अपनी ज़मीन पर किया जाने वाले दावे कमजोर हो जाते हैं। इससे सार्वजनिक भूमि का दुरुपयोग शुरू हो जाता है और लोग उसे नज़रअन्दाज़ करने लगते हैं। नतीजतन बिना किसी ज़ोर ज़बरदस्ती के उन ज़मीनों पर निजी अतिक्रमण को बढ़ावा मिल जाता है। नियमित रूप से सुचारु पीएलपीसी इनमें से कुछ बाधाओं को दूर करने की कोशिश कर सकता है और सुधारवादी कदम के बजाय अतिक्रमण को रोकने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है। जैसे कि सार्वजनिक भूमि की व्यापक पहचान, सर्वेक्षण और सीमांकन के लिए एक मज़बूत कदम उठाना और भूसम्पत्ति मानचित्र तैयार करना। ज़मीन से जुड़े रिकॉर्ड में पूरी तरह से सुधार चाहने वाला डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्ड मॉडर्नाईजेशन प्रोग्राम भी ज़मीन पर निजी स्वामित्व और अधिकार पर केंद्रित है। नवीनतम स्वामित्व योजना में से भी सार्वजनिक भूमि को हटा दिया गया है। इस योजना में आबादी वाले ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वेक्षण करने और भूमि के कार्यकाल को औपचारिक रूप देने के लिए ड्रोन तकनीक का उपयोग किया जाता है। पीएलपीसी भी सार्वजनिक संसाधनों के मुफ़्त उपयोग और स्थानिक रूप से संदर्भित आँकड़े तैयार करने और उन्हें भूमि प्रशासन के सामने लाने के लिए ऐसे ही तरीक़ों का इस्तेमाल कर सकता है। उसके बाद वे इस तैयार आँकड़ों को पंचायत में पंजीकृत सम्पत्तियों से जोड़ कर, सामाजिक ऑडिट के लिए आधार तैयार कर सकते है और अतिक्रमण पर निगरानी रखने के लिए आधार रेखा का काम कर सकते हैं।

हाल ही में राज्य में बड़े पैमाने पर हुए अतिक्रमण से निपटने के लिए मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडू सरकार को यह निर्देश दिया कि वह राज्य की सभी जल निकायों की उपग्रहीय (सेटेलाइट से) तस्वीरें लें और इन्हें प्रत्येक ज़िले के एक संदर्भ बिंदु के रूप में उपयोग में लाएँ ताकि उन संसाधनों को यथावत सुरक्षित रखा जा सके। पीएलपीसी इस ज़िम्मेदारी को डिज़ाइन के माध्यम से पूरा कर सकते हैं।

सार्वजनिक संसाधनों के उत्तरदायी शासन की स्थिति को हासिल करने के लिए अतिक्रमण को अपने केंद्र में रखने वाले क़ानूनी दृष्टिकोण के ऊपर से नीचे के नियम (टॉप-डाउन क़ानून) की प्रभावशीलता का मूल्यांकन ज़रूरी है। ज़मीन एक राजनीतिक मुद्दा है। संसाधनों से युक्त ज़मीन का एक सार्वजनिक टुकड़ा सार्वजनिक पूँजी होता है और इसमें सामाजिक सामंजस्य और सद्भाव के गुण निहित होते हैं। इसलिए इन संसाधनों के प्रबंधन में पीएलपीसी पंचायतों और ग्राम संस्थाओं को समर्थन देने वाली और अधिक प्रभावी तरीक़ों पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकता है। समस्याओं के निबटान के लिए एक सहायक शाखा के रूप में सामाजिक सम्बन्धों को बेहतर करने के क्षेत्र में काम करने से अधिक न्यायपूर्ण परिणाम हासिल हो सकते हैं।

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