Sunday 31 July 2022

बैठक का आयोजन:बजट की घोषणाओं के लंबित प्रकरणों सहित अन्य मामलों में दिए गए निर्देश

 नागाैर

राज्य के राजस्व मंत्री रामलाल जाट की अध्यक्षता में शनिवार को कलेक्ट्रेट सभागार में राजस्व संबंधी कार्यों की समीक्षा बैठक का आयोजन किया गया। राजस्व मंत्री जाट ने सभी अधिकारियों को विभिन्न स्तर पर लंबित प्रकरणों का त्वरित निस्तारण करने की बात कही।

उन्होंने कहा कि किसी भी प्रकरण का निचले स्तर पर निस्तारण महत्वपूर्ण है, आमजन का अपने कार्यों के लिए भटकना बेहद पीड़ादायक होता है इसलिए सभी अधिकारी मानवीय पहलू को ध्यान में रखते हुए संवेदनशीलता के साथ विभिन्न राजस्व प्रकरणों का त्वरित निस्तारण करें। उन्होंने अधिकारियों को रास्ता खोलने के प्रकरणों में नियत समय में मौका दिखवाकर प्रकरण निस्तारित करने के लिए निर्देशित किया।

उन्होंने विरासत के खाते खोलने में तुरंत कार्रवाई करने के लिए निर्देशित किया। साथ ही कहा कि उपखंड अधिकारी, विकास अधिकारी, तहसीलदार आपसी समन्वय से कार्य कर आमजन को राहत पहुंचाना सुनिश्चित करें। इस दौरान राजस्व मंत्री ने म्यूटेशन, रास्ता खोलने के प्रकरण, बजट घोषणाओं के लम्बित प्रकरण सहित विभिन्न राजस्व प्रकरणों की समीक्षा की ओर आवश्यक दिशा निर्देश दिए।

वहीं बंजर भूमि व चारागाह विकास बोर्ड के अध्यक्ष संदीप सिंह चौधरी ने जिले की समस्त तहसीलों में स्थित बंजर व चारागाह भूमि की समीक्षा करते हुए पंचायत समिति व ग्राम पंचायत स्तर पर बंजर भूमि व चारागाह विकास समितियों के गठन व इनके कार्यकलापों पर चर्चा की।

इस दौरान उन्होंने त्रि-स्तरीय समितियों द्वारा चिन्हित बंजर व चारागाह भूमि पर अतिक्रमणों की वर्तमान स्थिति व इन भूमियों को अतिक्रमण मुक्त करने के संबंध में आ रही बाधाओं को दूर करने व जिले में चालू वित्तीय वर्ष में चारागाह विकास के लिए स्वीकृत कार्य व चारागाह विकास के लिए प्रस्तावित कार्य की योजना बनाकर जिले में चिन्हित बंजर व चारागाह भूमि पर महात्मा गांधी नरेगा के संबंध में आवश्यक कार्रवाई के लिए निर्देशित किया।

इस अवसर पर बीसूका उपाध्यक्ष जाकिर हुसैन गैसावत, जायल विधायक मंजू मेघवाल, डेगाना विधायक विजयपाल मिर्धा, अतिरिक्त जिला कलेक्टर मोहनलाल खटनावलिया, राजस्व अपील अधिकारी रिछपाल सिंह बुरड़क, जिला परिषद के अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी दलीप कुमार सहित जिले के राजस्व कार्यों से जुड़े अधिकारी उपस्थित थे।


https://www.bhaskar.com/local/rajasthan/nagaur/news/instructions-given-in-other-matters-including-pending-budget-announcements-130126569.html

पुलिस की बजरी माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई, मासी नदी के पास बने बजरी स्टॉक किए नष्ट

फागी पुलिस ने बजरी माफिया और परिवहन करने वालों के खिलाफ अभियान चला रखा है. रेनवाल मांझी और फागी थाना पुलिस ने सयुंक्त अभियान चलाकर दाबिश में मासी नदी के समीप चारागाह भूमि पर बजरी के तीन बड़े स्टॉक को नष्ट कर यहां से बजरी को नदी में डलवाया है.

Written By  Zee Rajasthan Web Team

Updated: Jul 30, 2022 


Dudu: फागी पुलिस ने बजरी माफिया और परिवहन करने वालों के खिलाफ अभियान चला रखा है. रेनवाल मांझी और फागी थाना पुलिस ने सयुंक्त अभियान चलाकर दाबिश में मासी नदी के समीप चारागाह भूमि पर बजरी के तीन बड़े स्टॉक को नष्ट कर यहां से बजरी को नदी में डलवाया है.

पुलिस ने बजरी मफिया और परिवहन करने वालों के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया है. दूदू इलाके में जहां पुलिस ने अवैध परिवहन पर लगाम लगाने के लिए दो-तीन पहले ही बजरी के स्टॉक नष्ट कराए. वहीं बजरी खनन और परिवहन का केन्द्र मानें जानें वाले ग्राम डाबिच में मांसी नदी के समीप चरागाह भूमि में बजरी के तीन बड़े स्टॉक नष्ट कर यहां से बजरी को नदी में डलवाया गया. 

जानकारी के मुताबिक दूदू और फागी इलाके में पुलिस अब तक करीब डेढ़ से दो करोड़ रुपये की बजरी नष्ट करा चुकी है. पुलिस अधीक्षक ग्रामीण मनीष अग्रवाल और एएसपी दिनेश शर्मा के निर्देशन में सीओ अशोक चौहान के नेतृत्व में फागी थानाधिकारी भंवर लाल वैष्णव, रेनवाल मांजी थानाधिकारी हवासिंह, एएसआई सुभाष सामोता और आरएसी के जवानों और पुलिस के अतिरिक्त जाब्ते के साथ प्रात: 10 बजे ग्राम डाबिच में पहुंचकर कार्रवाई को अंजाम दिया. पुलिस के ग्राम डाबिच पहुंचते ही बजरी माफिया फरार हो गए.

चरागाह भूमि में अवैध भंडारण
पुलिस की टीम बजरी के स्टॉक की तलाश करते हुए मांसी नदी के पास जंगल में चरागाह भूमि पर पहुंची, जहां बबूलों के बीच तीन जगह भारी मात्रा में बजरी के स्टॉक लगे मिले. पुलिस ने दो जेसीबी और चार ट्रैक्टरों की मदद से शाम 6 बजे तक बजरी को नदी में डालने का कार्य जारी रखा. 

गौरतलब है कि बरसात के मौसम में ट्रैक्टर-ट्रॉली के साथ डम्पर या अन्य ट्रक बजरी भरने नदी में नहीं पहुंच पाते हैं, जिसके चलते बजरी माफिया बजरी का स्टॉक चरागाह भूमि में कर लिया था, जहां से अवैध बजरी का परिवहन कर ले जाया जा रहा था. सूत्रों की मानें तो शुक्रवार को बजरी के स्टॉक से करीब 150 वाहन बजरी को नष्ट किया गया है.

Amit Yadav

https://zeenews.india.com/hindi/india/rajasthan/jaipur/police-action-against-the-gravel-mafia-destroyed-the-gravel-stock-built-near-the-masi-river/1280671



एक हजार पौधे लगाने का लक्ष्य:अरठवाड़ा के चारागाह भूमि में किया पौधरोपण

माउंट आबू

समीपवर्ती अरठवाड़ा ग्राम पंचायत की ओर से चारागाह भूमि पर एसडीएम भागीरथ चौधरी व विकास अधिकारी श्याम सुंदर सिंह की मौजूदगी में पौधरोपण किया गया। ग्राम पंचायत की ओर से करीब 1000 पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है। इस मौके सरपंच मुकेश कुमार राणा, रंजीत कुमार मीणा ग्राम विकास अधिकारी, जितेंद्र कुमार लोहार पंचायत सहायक, कमलेश कुमार माली पंचायत सहायक, छगन लाल मीणा राजीव गांधी युवा मित्र, जूजा राम मेघवाल वार्ड पंच, रेखा, जोशना, नीता नरेगा मेट व नरेगा श्रमिक मौजूद थे। कालंद्री स्कूल में लगाए पौधे : कालंद्री | महात्मा गांधी राजकीय विद्यालय हस्तिनापुर कालंद्री में शनिवार को नो बैग डे के तहत बालसभा अपनों के साथ विषय पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए। साथ ही स्कूल परिसर में पौधरोपण किया। इस मौके छात्रों को पॉलीथिन का प्रयोग नहीं करने के लिए प्रेरित किया गया। इस दौरान एसएमसी अध्यक्ष कला देवी, भंवरलाल माली, रमेश गोयल, प्रधानाचार्य भावेश कुमार पुरोहित, रतनसिंह सिंदल, छगनलाल मेघवाल, पीयूष कुमार, मीरा चौहान, पवन कुमारी, पिंकी सहगल, तराना अंजुम कुरैशी समेत छात्र-छात्राएं मौजूद थे।

https://www.bhaskar.com/local/rajasthan/sirohi/mount-abu/news/plantation-done-in-the-pasture-land-of-arthwada-130127297.html

डीएम बोले:मेवाड़ा बांध की नहरों की सफाई रखो, चारागाह विकास के कार्य करो

डूंगरपुर



कलेक्टर डॉ. इंद्रजीत यादव ने शनिवार को पंचायत समिति बिछीवाड़ा की ग्राम पंचायत मेवाड़ा का निरीक्षण करते हुए ग्राम विकास अधिकारी पूरणमल को मेवाड़ा बांध की नहरों की सफाई रखने, चारागाह विकास के कार्य करने के निर्देश दिए हैं। पंचायत में चल रहे नरेगा कार्यों की भी जानकारी ली।

कलेक्टर ने राजस्व गांव, चारागाह विकास एवं मेवाड़ा बांध की नहराें की सफाई के बारे में जानकारी ली। इस पर ग्राम विकास अधिकारी ने बताया कि नरेगा में एक साईड पर 30 श्रमिक कार्य कर रहे हैं। एक्टिव श्रमिक 765 है।

उनकी पंचायत क्षेत्र में राजस्व गांव मेवाड़ा, वाट डा एवं कानपुर है। आदर्श तालाब का जीर्णोद्धार का कार्य किया जा रहा है। सरपंच लक्ष्मण अहारी ने बताया कि नहरों की सफाई कराई गई थी लेकिन बारिश में मिट्टी गिरने से बंद हो गई है।

चारागाह विकास, पेड़ लगाने व वाटिका निर्माण करने के बारे में भी जानकारी दी। ग्राम वासी कमलेश द्विवेदी, सरपंच अहारी व महेश यादव ने रोडवेज बस संचालित कराने की मांग की। कलेक्टर ने रोडवेज बस के रूट की जानकारी कलेक्टर कार्यालय भिजवाने की कहा।

https://www.bhaskar.com/local/rajasthan/dungarpur/news/keep-the-canals-of-mewara-dam-clean-do-pasture-development-work-130125831.html

आमजन का अपने कार्यों के लिए भटकना बेहद पीड़ादायक होता है - जाट

राजस्व मंत्री रामलाल जाट ने ली जिला स्तरीय अधिकारियों की समीक्षा बैठक

नागौर

Published: July 31, 2022 

नागौर. 'किसी भी प्रकरण का निचले स्तर पर निस्तारण महत्वपूर्ण है, आमजन का अपने कार्यों के लिए भटकना बेहद पीड़ादायक होता है, इसलिए सभी अधिकारी मानवीय पहलू को ध्यान में रखते हुए संवेदनशीलता के साथ विभिन्न राजस्व प्रकरणों का त्वरित निस्तारण करें और जिन मामलों में स्वयं प्रशासन की ओर पहल की जाकर निस्तारण किया जाना है तो वो भी किया जाना चाहिए।' यह बात राजस्व मंत्री रामलाल जाट ने शनिवार को यहां कलक्ट्रेट में राजस्व संबंधी कार्यों की समीक्षा बैठक को संबोधित करते हुए कही। राजस्व मंत्री ने अधिकारियों को रास्ता खोलने के प्रकरणों में नियत समय में मौका दिखवाकर प्रकरण निस्तारित करने के लिए निर्देशित किया।


राजस्व मंत्री जाट ने सभी अधिकारियों को विभिन्न स्तर पर लंबित प्रकरणों का त्वरित निस्तारण करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि अधिकारियों की ओर से किसी भी प्रकरण में लिया गया, तुरंत एक्शन आमजन का व्यवस्थाओं के प्रति भरोसा बढ़ाता है। उन्होंने विरासत के खाते खोलने में तुरंत कारवाई करने के लिए निर्देशित किया। साथ ही कहा कि उपखंड अधिकारी, विकास अधिकारी, तहसीलदार आपसी समन्वय से कार्य कर आमजन को राहत पहुंचाना सुनिश्चित करें। इस दौरान राजस्व मंत्री ने म्यूटेशन, रास्ता खोलने के प्रकरण, बजट घोषणाओं के लम्बित प्रकरण सहित विभिन्न राजस्व प्रकरणों की समीक्षा की और आवश्यक दिशा निर्देश दिए।

बंजर एवं चरागाह भूमि पर लगाए तैलीय पौधे - चौधरी

बंजर भूमि एवं चरागाह विकास बोर्ड के अध्यक्ष संदीप सिंह चौधरी ने जिले की समस्त तहसीलों में स्थित बंजर एवं चरागाह भूमि की जानकारी लेते हुए पंचायत समिति एवं ग्राम पंचायत स्तर पर बंजर भूमि एवं चरागाह विकास समितियों के गठन एवं इनके कार्यकलापों पर चर्चा की। उन्होंने त्रि-स्तरीय समितियों की ओर से चिह्नित बंजर एवं चारागाह भूमि पर अतिक्रमणों की वर्तमान स्थिति एवं इन भूमियों को अतिक्रमण मुक्त करने के संबंध में आ रही बाधाओं को दूर करने एवं जिले में चालू वित्तीय वर्ष में चारागाह विकास के लिए स्वीकृत कार्य एवं चारागाह विकास के लिए प्रस्तावित कार्य की योजना बनाकर जिले में चिह्नित बंजर एवं चरागाह भूमि पर महात्मा गांधी नरेगा एवं अन्य संबंधित विभागों के अभिसरण से रतनजोत, करंज, महुआ एवं अन्य तैलीय पौधों का पौधारोपण कर निर्धारित लक्ष्यों के संबंध में आवश्यक कार्रवाई के लिए निर्देशित किया।

ये रहे उपस्थित

बैठक में बीसूका उपाध्यक्ष जाकिर हुसैन गैसावत, जायल विधायक मंजू मेघवाल, डेगाना विधायक विजयपाल मिर्धा, जिला कलेक्टर पीयूष समारिया, एडीएम मोहनलाल खटनावलिया, राजस्व अपील अधिकारी रिछपाल सिंह बुरड़क, जिला परिषद के अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी दिलीप कुमार सहित जिले के राजस्व कार्यों से जुड़े अधिकारी उपस्थित रहे।

Shyam Choudhary

https://www.patrika.com/nagaur-news/it-is-very-painful-for-the-common-man-to-wander-for-his-work-jat-7684445/

Saturday 30 July 2022

राजस्व मंत्री ने ली अजमेर में राजस्व सम्बन्धी कार्यों की समीक्षा बैठक, संवेदनशीलता एवं मानवीय पक्ष के साथ कार्य करने के दिए निर्देश

बैठक में राजस्व एवं काश्तकारी अधिनियमों के सम्बन्ध में विस्तारपूर्वक चर्चा की गई। 

By Omprakash Bairwa  Sat Jul 30 2022


जयपुर। राजस्व मंत्री रामलाल जाट ने शुक्रवार को अजमेर जिले के राजस्व सम्बन्धी कार्यों की समीक्षा बैठक ली। इसमें आमजन के कार्य संवदेनशीलता एवं मानवीयता के साथ कर काश्तकारों को लाभान्वित करने के निर्देश दिए। बंजर भूमि एवं चारागाह विकास बोर्ड अध्यक्ष संदीप सिंह चौधरी ने चारागाह विकास के बारे में चर्चा की। सेटलमेंट कमीशनर राजेन्द्र विजय ने भू-अभिलेखों के आधुनिकरण की रूपरेखा प्रस्तुत की।

जिला कलेक्टर अंश दीप ने प्रशासन गांवों के संग अभियान की प्रगति से अवगत कराया। बैठक में राजस्व एवं काश्तकारी अधिनियमों के सम्बन्ध में विस्तारपूर्वक चर्चा की गई। क्षेत्र में कार्य के दौरान आ रही बाधाओं के निराकरण के सम्बन्ध में सुझावों पर भी विचार विमर्श हुआ। जाट ने कहा कि राजस्व विभाग आमजन एवं काश्तकार से सीधा जुड़ा हुआ है। राजस्व अधिकारियों को संवेदनशीलता के साथ कार्य करना चाहिए। मानवीय पक्ष को केंद्र में रखकर निर्णय लेने से लोक कल्याण की भावना सुदृढ़ होगी।

उन्होंने कहा कि गैर खातेदारी से खातेदारी के प्रकरणों में सम्बन्धित तहसीलदार द्वारा भौतिक सत्यापन किया जाए। जिले में इस प्रकार के समस्त प्रकरणों की सीधी मॉनिटरिंग करके आगामी 60 दिनों में निस्तारण सुनिश्चित किया जाए। नोन कमाण्ड क्षेत्र के पात्र व्यक्तियों के प्रकरण प्राथमिकता के साथ निस्तारित हो। कमाण्ड क्षेत्र वाले व्यक्तियों के प्रकरण निर्धारित प्रक्रिया से नोटिस जारी कर किए जाए। काश्तकारी भूमि के रास्ते के प्रकरणों में आपसी समझाईस एवं समझौते के माध्यम से वाद निस्तारण का प्रयास किए जाए। इस प्रकृति के अधिक मुकदमों वाले गांवों में जनसुनवाई करनी चाहिए। पैतृक कृषि भूमि के सहखातेदारों के मध्य भूमि विभाजन एवं लम्बित राजस्व मुकदमों में समझाईश एवं समझौते को तरजिह देनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि नवीन राजस्व ग्रामों के लिए प्रशासन गांवों के संग अभियान में प्रस्ताव प्राप्त हुए है। प्राप्त प्रस्तावों का परीक्षण करवाकर राज्य सरकार को भेजा जाए। नवीन ग्रामों के सीमांकन के समय चारागाह का बंटवारा आनुपातिक रूप से करने की प्रक्रिया अपनाई जाए। समस्त राजस्व ग्रामों में राजकीय कार्यालयों एवं संस्थाओं के लिए भूमि आरक्षित करने की प्रक्रिया अमल में लाई जाए। शमशान, कब्रिस्तान एवं समाधि स्थल के प्रकरणों को तत्काल प्रभाव से निपटारा करें।

उन्होंने कहा कि भू-अभिलेखों के डिजिटलीकरण का कार्य पुष्कर के पायलट प्रोजेक्ट के पश्चात पूरे जिले में लागू किया जाएगा। इसमें समस्त राजस्व अधिकारियों का सहयोग मिलना चाहिए। नए नक्शे एवं पर्चा नोटिस में ग्राम सभा के माध्यम से ग्रामीणों की सक्रिय भूमिका सुनिश्चित होनी चाहिए। जिला कलक्टर द्वारा डिजिटलीकरण के कार्य की समीक्षा राजस्व अधिकारियों की बैठक में की जाएगी। वर्ष 2015 से पूर्व के पी-14 के नाम दर्ज भूमि के प्रकरणों के नियमन की कार्य योजना बनाई जाए। सरकारी भूमि में निजी खातेदारों द्वारा सिंचाई के लिए खोदे गए कुंओं का नियमन करने के लिए निर्धारित राशि जमा करवाकर कार्यवाही की जाए।

बंजर भूमि एवं चारागाह विकास बोर्ड के अध्यक्ष संदीप सिंह चौधरी ने जिले में चारागाह विकास की योजनाओं की समीक्षा की। बंजर एवं चारागाह भूमि को अतिक्रमण मुक्त करने की कार्ययोजना बनाने के निर्देश दिए। इस प्रकार की भूमियों में अवैध खनन रोकने के लिए विभिन्न विभागों के साथ समन्वय स्थापित कर कार्यवाही करने के लिए कहा।

सेटलमेंट कमीशनर राजेन्द्र विजय ने भू-अभिलेखों के डिजीटलीकरण के बारे में अवगत कराया। भारत सरकार के डिजिटल इण्डिया भू-अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम के लिए अजमेर जिले की 4 तहसीलों पुष्कर, अजमेर, नसीराबाद एवं पीसांगन का चयन किया गया था। इनमें से पुष्कर को पायलट प्रोजेक्ट के लिए चुना गया। अब समस्त तहसीलों के भू-अभिलेखों का भी आधुनिकीकरण होगा। सेटेलाइट इमेज के आधार पर बनाए गए नए नक्शों का किश्तवार नक्शों के साथ अध्यारोपण कर नए नक्शे बनाए जा रहे है। नए नक्शों के सम्बन्ध में पर्चा नोटिस जारी कर खातेदारों से आपत्ति मांगी जाएगी। खातेदार के संतुष्ट होने पर ही ई-धरती पोर्टल पर चढ़ाया जाएगा। नक्शे एवं क्षेत्र की वस्तुस्थिति में अंतर आने पर त्रुटि का निस्तारण किया जाएगा।

बैठक में किशनगढ़ विधायक सुरेश टांक ने विधानसभा क्षेत्र की आवश्यकताओं से अवगत कराया। किशनगढ़ विधानसभा क्षेत्र में विभिन्न स्थानों से अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही की राजस्व मंत्री जाट द्वारा सराहना की गई।

इस अवसर पर स्थानीय प्रतिनिधि संबंधित अधिकारी मौजूद थे।

https://sanjeevnitoday.com/Rajasthan/Revenue-Minister-took-review-meeting-of-revenue-related/cid8145358.htm








Thursday 28 July 2022

आमजन की भागीदारी से चारागाह विकास को मिलेगी प्रगति : विकास अधिकारी




शामलात पुनस्र्थापना संरक्षण चारागाह विकास कार्यक्रम कार्यशाला


बाड़मेर। 

पंचायत समिति सभागार शिव में आईटीसी मिशन सुनहरा कल, राजस्थान सरकार और फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी द्वारा चारागाह विकास के लिए कार्यशाला आयोजित की गई। धनदान देथा की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विकास अधिकारी ने चारागाह विकास करने के बारे में बताते हुए कहा की आम जन की भागीदारी से चारागाह विकास को प्रगति मिलेगी। सरकार द्वारा चारागाह के कार्य किए जा रहे हंै। इसमें समिति की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। उपखंड अधिकारी ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि इससे चारागाह विकास के माध्यम से जीव जगत का विकास कर सकते हैं।

चारागाह विकास समिति गठन होगा 


जिला प्रशिक्षक दिनेश कुमार ने प्रशिक्षण देते हुए कहा कि शामलाती भूमि के अधिकार, कानून नियमों एवं विकास करने के बारे में गांव स्तर पर राजस्थान पंचायती राज नियम 1996 के नियम 170 (1) के तहत प्रत्येक राजस्व ग्राम में चारागाह विकास समिति गठन किया जाना है। चारागाह विकास मनरेगा के अंतर्गत किए जाने के बारे में बताया गया। इस कार्यशाला के बाद में ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम विकास अधिकारी, कनिष्ठ तकनीकी सहायक, एवं सरपंच द्वारा प्रशिक्षण दिया जाएगा। तहसीलदार ने कहा कि अतिक्रमण आम समस्या है जिसे समाधान हेतु सहयोग कर चारागाह अतिक्रमण मुक्त कराने के बारे में बताया गया। सरपंचों को बंजर भूमि एवं चारागाह कार्यक्रम में सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने संबंधी बात कही। प्रशिक्षण के दौरान क्षमतावर्धन कार्यक्रम के अंतर्गत संभागियों को ग्राम पंचायत स्तर पर कमेटियों के सदस्यों को प्रशिक्षित करने हेतु प्रशिक्षित किया गया। प्रशिक्षण के दौरान एफईएस जिला समन्वयक हाकम सिंह राठौड़ ने शामलात भूमि के महत्व, उपयोग, शामलात संसाधनों की सुरक्षा , प्रबंधन की विस्तार से जानकारी प्रदान की।

वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाएंगे
उन्होंने बताया कि गांव स्तर पर वार्ड पंच की अध्यक्षता में चारागाह विकास समिति का गठन किया जाना है, जिसके माध्यम से चारागाह विकास कार्य कराए जा सकते हैं। चारागाह का विकास के अंतर्गत खाई खुदाई, वृक्षारोपण, नाडी एवं टांका निर्माण, घास-चारा लगाने का कार्य कराया जा सकता है। मोबाइल एप्लीकेशन के बारे बताते हुए कहा कि हम समय-समय पर ऑनलाइन जुडकर के इस कार्यक्रम को सफल बना सकते हैं। एक दिवसीय प्रशिक्षण के दौरान ग्राम विकास अधिकारी, सरपंच, सहायक विकास अधिकारी, कनिष्ठ तकनीकी सहायक, पंचायत समिति सदस्य, जिला परिषद सदस्य, सहायक अधिकारी आदि उपस्थित रहे।

https://dainikjaltedeep.com/pasture-development-will-get-progress-with-public-participation-development-officer/

बनास नदी में अवैध खनन, बोर्ड अध्यक्ष ने लिखा पत्र

टोंक

Published: July 29, 2022 08:47:08 pm

बनास नदी में अवैध खनन, बोर्ड अध्यक्ष ने लिखा पत्र

जुलाई-अगस्त में लीज पर भी नहीं होगा खनन

देवली की मिली थी शिकायतें

टोंक. देवली उपखण्ड में दी गई लीज और अन्य अवैध खनन की मिली शिकायत के बाद बंजर भूमि एवं चरागाह विकास बोर्ड के अध्यक्ष संदीप सिंह चौधरी ने जिला कलक्टर टोंक को पत्र लिखा है। इसमें कहा कि मुख्यमंत्री ने गत दिनों खनिज विभाग व चरागाह समेत अन्य विभागों की बैठक ली थी।


इसमें कहा था कि मानसून के दौरान जुलाई और अगस्त में खनन बंद कर दिया जाए। बजरी की आपूर्ति पूर्व में किए गए भंडारण से ही की जाए, लेकिन देवली क्षेत्र में बनास नदी में खनन की शिकायतें मिल रही थी। संदीप ने बताया कि देवली क्षेत्र के कांग्रेस कार्यकर्ता, जनप्रतिनिधि और ग्रामीणों ने शिकायत की थी कि बनास नदी देवली में इन दिनों बजरी का खनन किया जा रहा है।

चरागाह व बंजर भूमि पर भी अवैध खनन किया जा रहा है। जबकि यह मुख्यमंत्री के आदेश के विपरीत है। ऐसे में उन्होंने जिला कलक्टर को पत्र लिखा है कि वे अवैध खनन पर अंकुश लगाए। बनास नदी में जुलाई और अगस्त माह में किसी भी प्रकार खनन नहीं हो। उन्होंने कहा कि इसके बाद भी शिकायत मिलती है तो मुख्यमंत्री को अवगत कराया जाएगा। साथ ही जयपुर से टीम बनास नदी में पहुंचेगी।

5 साल बाद शुरू हुआ है खनन
टोंक जिले से गुजर रही बनास नदी में बजरी की लीज पर सुप्रीम कोर्ट ने 16 नवम्बर 2017 में रोक लगा दी थी। इसके करीब 5 साल बाद देवली ब्लॉक में फिर से खनन शुरू हुआ था। ग्रामीणों की शिकायत है कि बनास नदी में पानी आने के बावजूद बजरी का खनन जारी है। जबकि इस पर रोक है।

करोड़ों वसूल चुके राजस्व
सुप्रीम कोर्ट की ओर से लगाई गई रोक के बाद खनिज विभाग अवैध खनन से जुड़े वाहनों को पकड़ कर अब तक करोड़ों का जुर्माना वसूल चुकी है। इसके बावजूद अवैध खनन और परिवहन पर अंकुश नहीं लग पाया। जिले में करीब 110 किलोमीटर होकर निकल रही बनास नदी किसानों के लिए बढ़ा जल स्रोत है। इसके साथ ही खनिज विभाग के लिए आय का स्रोत भी है।

Jalaluddin khan

https://www.patrika.com/author/jalaluddin-singh-khan-6124/





Wednesday 27 July 2022

चरागाह भूमि पर दबंगों का कब्जा:प्रशासन ने पटवारियों से 15 अगस्त तक मांगी रिपोर्ट

बूंदी



प्रशासन ने चरागाह भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए पटवारियों से 15 अगस्त तक मौका रिपोर्ट मांगी है।

प्रशासन की अनदेखी से ग्राम पंचायतों में चरागाह भूमि पर दबंग लगातार अतिक्रमण कर रहे हैं। शिकायत पर प्रशासन कुछ कार्रवाई करता है, लेकिन अतिक्रमी फिर कब्जा कर लेते हैं। अब प्रशासन ने इस भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए पटवारियों से 15 अगस्त तक मौका रिपोर्ट मांगी है। उसके बाद अतिक्रमणों पर कार्रवाई की जाएगी।

नैनवां तहसील क्षेत्र के पटवार मंडल में बंबूली 44.31 हेक्टेयर, रालडी में 13.84 हेक्टेयर, अरण्या में 51.61 हेक्टेयर, लालगंज में 76.07 हेक्टेयर, बामनगांव में 105.01 हेक्टेयर, रजलावता में 107.02 हेक्टेयर, बालापुरा में 33 हेक्टेयर, गंभीरा में 15.41 हेक्टेयर, खामपुरिया, चावंडपुरा में 15.50 हेक्टेयर, नाहरगंज में 42.49 हेक्टेयर चरागाह भूमि है। यह भूमि धीरे-धीरे अतिक्रमण की भेंट चढ़ रही है। इससे गांवों में पशुओं के चारे का संकट खड़ा हो रहा है, लेकिन प्रशासन चारागाह भूमि से अतिक्रमण हटाने की बजाय अतिक्रमियों को नोटिस देकर या फिर पेनल्टी लगाकर इतिश्री कर लेता है।

वर्ष 2017 में गोचर भूमि मुक्तिदल द्वारा 60 दिन का नैनवां में अनशन करने के बाद में कुछ पंचायतों में अतिक्रमण हटाए थे, लेकिन प्रशासन व ग्राम पंचायतों की बेफिक्री से चारागाह भूमि पर अतिक्रमण फिर से हो गया है। बंबूली के किसान बन्ना लाल जाट ने बताया कि अगर चरागाह भूमि से अतिक्रमण हटाया जाए तो पशु आराम से पेट भर सकते हैं। किसान रामकुमार धाकड़ ने बताया कि हजारों बीघा चरागाह भूमि थी उस पर अतिक्रमण कर रखा है अब पशुओं को चराने के लिए हम इधर-उधर भटक रहे हैं। इसलिए प्रशासन को अतिक्रमणों को हटाना चाहिए।

बजरंग दल के जिला संयोजक लकी चोपड़ा ने बताया कि यदि यह जमीन अतिक्रमण मुक्त करा दी जाए तो मवेशियों की चराने की जगह मिल जाएगी, लेकिन समाधान की दिशा में कुछ नहीं किया जा रहा है। सरकार के आंकड़ों में पटवार मंडल वार हजारों बीघा चरागाह भूमि है, लेकिन वर्तमान में वहां पर नाम मात्र की चरागाह भूमि बची है। नैनवां तहसीलदार महेश शर्मा ने बताया कि मंगलवार को सभी पटवारियों को धारा 91 के तहत आदेश निकाले हैं। 15 अगस्त तक सभी को रिपोर्ट पेश करनी है। रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाई की जाएगी, जहां पर शिकायत आ रही है वहां पर तुरंत अतिक्रमण हटाने के आदेश दिया है।

https://www.bhaskar.com/local/rajasthan/bundi/news/administration-sought-report-from-patwaris-by-august-15-130107054.html

Sunday 24 July 2022

सामुदायिक संसाधनों से चारे की 60 प्रतिशत जरूरतें होती हैं पूरी: जोशी

सामुदायिक संसाधनों को विकसित करने की दिशा में कार्यरत फाउंडेशन फॉर ईकोलॉजिकल सिक्युरिटी के कार्यकारी निदेशक संजय जोशी ने राजस्थान जैसे राज्यों में सामुदायिक संसाधनों व पशुपालन की उपयोगिता पर डाउन टू अर्थ से विस्तार से बात की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:

By Bhagirath Srivas

Monday 25 July 2022



राजस्थान के उदयपुर जिले के तिरौल गांव में विकसित हुआ चारागाह ग्रामीणों की चारे की जरूरतें पूरी कर रहा है। फोटो: विकास चौधरी

क्या दुनिया पशुधन उत्पादन की पारंपरिक प्रणाली की वापसी की गवाह बनने जा रही है?

इंटरनेशल यूनियन फॉर कंसर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की 2006 की रिपोर्ट में कहा गया था कि उत्पादन प्रणाली और उपभोग प्रणाली के रूप में पशुपालन दुनिया के लाखों गरीबों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। खासकर उनके लिए जो शुष्क इलाकों में रहते हैं और जिन्हें जलवायु अनिश्चितताओं के चलते भोजन-पानी की समस्या का सामना करना पड़ता है। अनुमानतः पशुपालन कई शुष्क-भूमि क्षेत्र वाले देशों के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में 8.8 से 20 फीसदी तक योगदान देता है। साथ ही यह कई ऐसी सेवाएं और उत्पाद उपलब्ध कराता है, जिनकी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय उपयोगिता है, जैसे जैव विविधता, पोषक-चक्र, ऊर्जा प्रवाह, कृषि में निवेश आदि।


भारत में पशुपालन करने वाले समूह आंध्र प्रदेश के शुष्क और अर्धशुष्क इलाकों से लेकर, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु के साथ- साथ उत्तर के पहाड़ी क्षेत्र और दक्षिण के नीलगिरी इलाके में मौजूद हैं। एफईएस के अनुभवों के आधार पर हम कह सकते हैं कि पशुपालन बहुत सुदृढ़ आजीविका प्रणाली है जो जलवायु अनिश्चितताओं, अकाल, सूखा और पानी और चारागाह की कम उपलब्धता जैसी समस्याओं से निपटने के लिए बदलाव करने की क्षमता रखती है। इसीलिए समाजशास्त्रियों का मानना है कि अगर सरकारी नीतियों का सहयोग मिले तो पशुपालन दुनिया की एक बड़ी आबादी को आजीविका संवर्धन में बहुत सहयोग दे सकती है।

पशुपालन को सबसे पुराना या पहला पेशा जाता है, जिसमें आजीविका के लिए गतिशील रहना अनिवार्य है। क्या यह आधुनिक समय में उपयुक्त है?

पशुपालन के सिद्धांत पारंपरिक खेती से भिन्न हैं। इसमें फसलों के उप-उत्पादों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें कोई ईंधन या उर्वरक उपयोग में नहीं लाया जाता। वास्तव में यह प्राकृतिक और जैविक खेती को बढ़ावा देता है और दूरदराज के क्षेत्रों में भोजन का उत्पादन संभव बनाता है। भारत में पशुपालक परिवारों की सही संख्या को लेकर तस्वीर साफ नहीं है फिर भी माना जाता है कि वह देश की आबादी की एक फीसदी से ज्यादा नहीं हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के लगभग 77 फीसदी मवेशियों को खुली चराई प्रणालियों में रखा गया है और वे सामुदायिक संसाधनों जैसे चारागाहों, जंगलों और सामुदायिक जल संसाधनों पर निर्भर हैं। हो सकता है कि कई छोटे किसानों और पशुपालकों के लिए मवेशी आय का प्राथमिक स्रोत न हों, पर वह इन परिवारों की आय और पोषण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। देश का 53 फीसदी दूध और 74 फीसदी मांस का उत्पादन इसी व्यवस्था के जरिए होता है। ऐसी प्रणाली के जरिए मिलने वाले दुग्ध और अन्य उत्पाद ज्यादा स्वादिष्ट और पोषक होते हैं। खुली चराई जैसी विस्तृत प्रणालियों में रखे जाने वाले पशुधन सालाना 3,35,000 करोड़ रुपए के अनुमानित मूल्य के जैविक उर्वरक का योगदान भी करते हैं। उपरोक्त योगदान को देखते हुए कहा जा सकता है कि इनकी उपयोगिता आज के समय में भी महत्वपूर्ण है।

राजस्थान पर वापस लौटें तो आपने पशुपालन पर काफी फोकस किया है। आपके अनुभव कैसे रहे?

जहां तक हमारे अनुभवों की बात है तो हम राजस्थान में उन इलाकों में काम करते हैं जहां ज्यादातर भूमिहीन, छोटे किसान और पशुपालक सामुदायिक संसाधनों पर निर्भर हैं। शामलात संसाधनों के काम से मवेशियों और उन्हें पालने वालों को काफी मदद मिली है। हमारी कोशिश रहती है कि शामलात संसाधनों जैसे चारागाह व वनों पर समुदाय का अधिकार सुनिश्चित हो और इन्हें पुनर्जीवित किया जाए।

इससे पशुधन के लिए चारा और जल सुनिश्चित होता है। राजस्थान के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पशुधन उत्पादन प्रणाली के लिहाज से यह काम महत्वपूर्ण है। इसके परिणामस्वरूप, इन इलाकों में मवेशियों, खासकर छोटे मवेशियों जैसे भेड़ और बकरियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। संरक्षित शामलात, गांव में उपलब्ध कुल सामूहिक जमीन का एक छोटा सा हिस्सा होने के बावजूद भी गांव के कुल चारे में करीब 60 प्रतिशत का योगदान देते हैं। राजस्थान में जिन गावों में शामलात संरक्षित हैं, वहां औसतन एक परिवार को हर साल लगभग 10 हजार रुपए का चारा शामलात से मिल रहा है।

आप यह काम राजस्थान में ही क्यों कर रहे हैं? क्या इस राज्य का परिदृश्य पशुपालन के लिए बेहतर है?

राजस्थान में प्राकृतिक संसाधनों के विकास से जुड़ा कोई भी काम शुष्क-खेती व्यवस्था के दायरे में ही किया जा सकता है। मवेशी राजस्थान में आजीविका के बड़े स्रोत हैं। यहां नियमित और कभी-कभी गंभीर सूखे के चलते भूमिहीन, सामाजिक रूप से पिछड़ा वर्ग और छोटे किसान आजीविका के लिए एक से ज्यादा स्रोतों पर निर्भर हैं। राज्य में एकमात्र आजीविका विकल्प के रूप में केवल खेती करना व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि इसका अधिकांश भूभाग वर्षा पर निर्भर है। इसलिए राजस्थान का शुष्क और अर्ध-शुष्क वातावरण, पशुधन आधारित खेती को आजीविका के लिए ज्यादा विश्वसनीय विकल्प बनाता है। ये काम हम सिर्फ राजस्थान ही नहीं, बल्कि देश के अन्य शुष्क और अर्ध-शुष्क राज्यों जैसे गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में भी कर रहे हैं।

चारागाह भूमि पशुपालन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, खासकर भूमिहीन, सीमांत और छोटे किसानों के लिए, लेकिन राज्य में इस भूमि का एक बड़ा हिस्सा खराब हो चुका है। स्वस्थ और संरक्षित सामुदायिक भूमि से चारा और पानी उपलब्ध हो सकता है जिससे पशुधन को प्रत्यक्ष मदद मिलती है और पशुपालकों की आजीविका मजबूत होती है। इससे पशुपालकों को सूखे और बीमारियों जैसी प्राकृतिक आपदाओं से लड़ने में मदद मिलती है। आदर्श स्थिति तो यह होगी कि राज्य सरकार समुदायों को शामलात संसाधनों जैसे चारागाह व वनों के प्रबंधन और शासन का अधिकार देना लगातार जारी रखें ताकि इन संसाधनों की हालत में सुधार हो सके।

जब हम पशुपालन की बात करते हैं तो चारागाह की उपलब्धता और चारे की उपलब्धता, ये दो बड़े सवाल सामने आते हैं। आप उनका प्रबंधन कैसे करते हैं?

हमारा निरंतर प्रयास है कि सामुदायिक जमीन पर स्थानीय समुदाय का हक सुरक्षित हो, साझा प्राकृतिक-संसाधनों के स्थानीय प्रबंधन में सुधार हो, इन कामों के लिए स्थानीय संघों को बढ़ावा मिले और जंगलों, चारागाहों और जल संसाधनों को बेहतर करने के लिए मनरेगा जैसे सार्वजनिक कार्यक्रम का उपयोग होता रहे। इसके अलावा हम खेती और पशुपालन को मजबूत करने के लिए जंगल या चारागाह जैसे सामुदायिक संसाधन के संतुलित इस्तेमाल पर जोर देते हैं ताकि स्थानीय समुदायों को पर्याप्त भोजन, जानवरों को चारा, पानी और जलाने की लकड़ियां मिलती रहें। प्रकृति-कार्यशाला (एफईएस की क्षमतावर्द्धन इकाई) के माध्यम से हम ग्रामीण समुदायों, दुग्ध संघों, पंचायतों और सरकारी विभागों की क्षमतावर्द्धन के लिए काम करते हैं, जिससे राजस्थान में साझा प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर तरीके से संरक्षण किया जा सके।

हाल में राजस्थान सरकार ने मनरेगा के अंतर्गत चारागाहों और पानी के स्रोतों के विकास को प्राथमिकता दी है। एफईएस ने ग्रामीण विकास विभाग के साथ जागरुकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाने, मनरेगा को सक्रिय करने और भूमि और जल संसाधनों को बहाल करने के लिए सरकार के साथ मिलकर काम किया है। साथ ही, पंचायत और ब्लॉक अधिकारियों की क्षमतावर्द्धन के लिए बंजर भूमि और चारागाह विकास विभाग के साथ कार्य आरम्भ किया है। जिन गांवों में हम काम कर रहे हैं, वहां सामुदायिक जमीनों, खासकर चारागाहों को पुनःस्थापित कराने जैसे सामुदायिक प्रयासों से चारे और पानी की उपलब्धता बढ़ी है। जाहिर है, इससे पशुपालन भी मजबूत हुआ है। इसलिए आवश्यक है कि हम सामुदायिक भूमि और पशुपालन आधारित आजीविका को सुदृढ़ बनाने के लिए प्रयास करते रहें। इसी से गांव का आजीविका तंत्र मजबूत होगा।

https://www.downtoearth.org.in/hindistory/economy/rural-economy/Community-resources-meet-60-percent-of-fodder-needs-83561


सीमा ज्ञान:चरागाह जमीन का सीमा ज्ञान, मेड़बंदी का काम शुरू

 दौसा

रानोली ग्राम पंचायत कठमाना के अरनियाकांकड गांव में 400 बीघा चरागाह की जमीन पर प्रभाव शाली लोगों द्वारा कब्जा कर रखा था। जिससे गरीब परिवार के लोगों को जीवन यापन करने में परेशानी उठानी पड़ रही थी। गांव के कुछ लोगों ने गांव के चारागाह भूमि से अतिक्रमण हटाने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी।

जिस पर हाईकोर्ट ने जिला एवं उपखंड प्रशासन को चारागाह भूमि पर से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया। कठमाना सरपंच गणेश चौधरी ने बताया कि पंचायत प्रशासन ने चारागाह भूमि से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई पूरी कर दी है। अब मेड़बंदी का कार्य शुरू किया जाएगा। इस मौके पर वार्ड पंच लादूराम चौधरी, भंवर पडियार, बेनाम सरकार, नोरत मल जाट, जीतराम जाट, दामोदर जांगिड़, भरत मीणा आदि मौजूद रहे।

Wednesday 20 July 2022

Jhalawar: चारागाह को दबंगों से मुक्त कराने को लेकर ग्रामीणों ने किया विरोध प्रदर्शन

First India News- Digital Desk

2022/07/21

झालावाड़: जिले के मनोहरथाना तहसील के ग्राम पंचायत सरेठी के गाव में  800 बीघा चारागाह की भूमि पर गांव के कुछ प्रभावशाली लोगों ने उक्त भूमि पर कब्जा करके फसल बुआई कर दी है. जिससे गाव के मवेशियों को चारा पानी का संकट उत्पन्न हो गया है. गांव के लोगों ने चारागाह (pasture) भूमि से दबंगों का कब्जा हटाने  के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन किया और जमकर नारेबाजी की गई.




झालावाड़ जिले के मनोहरथाना तहसील के ग्राम पंचायत सरेठी के गांव वाले चारागाह भूमि से दबंगों का कब्जा हटाने के लिए सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन किया. नादेड़ गांव की चारागाह की 800 बीघा जमीन पर गांव के प्रभावशाली धन्नालाल, श्यामलाल, मोहन और गोपाल आदि ने कब्जा करके सोयाबीन की फसल की बुआई कर दी है. उक्त चारागाह जमीन पर जब गांव वाले अपने मवेशी चराने के लिए लेकर जाते है तो ये प्रभावशाली लोग मवेशी चराने नहीं देते है और मारपीट पर अमादा हो जाते हैं. आज चारागाह जमीन से इन्हीं प्रभावशील लोगों का कब्जा हटाने के लिए गांव के लोगों ने प्रदर्शन किया और जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा.

https://firstindianews.com/news/Jhalawar-News-Villagers-protest-free-pasture-oppressors-1369212635



तहसीलदार सोनी ने चरगाह भूमि को अवैद अतिक्रमण से मुक्त किया

 




Tuesday 19 July 2022

पशुओं को चराने को लेकर विवाद, मामला थाने तक पहुंचा

 Shantanu Roy 20 July 2022

झालावाड़। 


दांगीपुरा क्षेत्र के दो गांवों के लोगों के बीच चारागाह में मवेशी चराने को लेकर विवाद हो गया। इस संबंध में एक गांव के लोगों ने एसडीएम कार्यालय में ज्ञापन दिया। इस पर एसडीएम छत्रपाल चौधरी, तहसीलदार धनराज मीणा डांगीपुरा थाने पहुंचे और दोनों गांव के लोगों को बुलाकर समझाया. थानाप्रभारी गुमान सिंह ने बताया कि एसडीएम तहसीलदार व पुलिस ने दोनों पक्षों को समझाया था. 

इधर चारागाह की जमीन पर मवेशी चराने को लेकर विवाद हो गया, एक गांव के लोग दूसरे गांव के पशुओं को जमीन पर चरने से मना कर रहे थे. इस पर एसडीएम ने कहा कि चारागाह सभी के लिए है। पशुओं के चरने पर रोक नहीं लगाई जा सकती। विवाद बड़ा नहीं था, इसके लिए एक पक्ष के दो और दूसरे पक्ष के चार लोगों को प्रतिबंधित कर दिया गया था।

https://jantaserishta.com/local/rajasthan/dispute-over-grazing-animals-the-matter-reached-the-police-station-1398303

Monday 18 July 2022

आवरण कथा: जहां चाह, वहां राह

राजस्थान के कई गांव चारागाह का विकास और प्रबंधन करके चारे के संकट से उबर चुके हैं

By Bhagirath Srivas

On: Tuesday 19 July 2022
उदयपुर के तिरोल गांव में विकसित किए गए चारागाह से ग्रामीणों की साल भर की चारे की जरूरतें पूरी हो रही हैं। ग्रामीणों को अब चारा नहीं खरीदना पड़ता (फोटो: विकास चौधरी)

चारे की जद्दोजहद के पहली कड़ी और दूसरी कड़ी के बाद पढ़ें अगली कड़ी - 

शुष्क और अर्द्धशुष्क राजस्थान भले ही चारे के संकट से जूझ रहा हो लेकिन राज्य के बहुत से गांव इससे पूरी तरह उबर चुके हैं। उदयपुर जिले का बूझ गांव ऐसे ही गांवों की सूची में शामिल है। यहां रहने वाली मोहनी बाई का परिवार गांव के उन 180 परिवारों में है, जिन्हें अब चारा नहीं खरीदना पड़ता। करीब 800 लोगों की आबादी और लगभग 2,000 मवेशियों (300 बैल, 1,200 बकरी, 500 गाय व भैंस) वाले इस गांव में पिछले तीन साल में यह परिवर्तन हुआ है। गांव में रहने वाली 50 वर्षीय सरसी बाई 2016 से पहले के दिनों को याद करती हैं, “हमने चारे के लिए बड़ा संघर्ष किया है। हमें 6-7 किलोमीटर दूर निजी बीड (निजी पहाड़ अथवा चारागाह) से चारा खरीदकर लाना पड़ता था।” सरसी बाई कहती हैं कि किसानों को खेतों से कुछ हद तक चारा मिल जाता है लेकिन इसकी उपलब्धता सीमित दिनों के लिए ही होती है। ऐसे में चारा खरीदना अधिकांश परिवारों की मजबूरी और जरूरत दोनों थी।

वर्तमान में रावलिया कला-2 ग्राम पंचायत के बूझ गांव में चारागाह से अब हर साल औसतन 90-100 बंडल (200-250 किलो) चारा प्रत्येक परिवार को मिल रहा है। बाजार में 2-3 किलो के चारे की एक पुले (बंडल) की औसत कीमत 8-10 रुपए है। प्रति परिवार करीब 1,000 रुपए और पूरे गांव के करीब 1 लाख 80 हजार रुपए सिर्फ सूखे चारे पर बच रहे हैं। इसके अलावा खुली चराई के लिए उपलब्ध चारागाह से गांव की हरे चारे की जरूरतें पूरी हो जाती हैं। सूखे और हरे चारे को मिलाकर देखें हर परिवार को साल में औसतन 10,000 रुपए के मूल्य के बराबर का चारा लगभग निशुल्क प्राप्त हो रहा है।

गांव में चारे की आत्मनिर्भरता के बीज छह साल पहले पड़े थे। यह वह वक्त था जब ग्रामीण एक सर्वेक्षण के दौरान शामलात (सामुदायिक भूमि) के प्रबंधन और उसके पुनरोद्धार पर काम करने वाली गैर लाभकारी संस्था फाउंडेशन फॉर इकोलोजिकल सिक्युरिटी (एफईएस) के संपर्क में आए। एफईएस राजस्थान सहित देशभर के कई राज्यों में शामलात को विकसित करने की दिशा में पिछले कई दशकों से काम कर रही है। चारागाह का प्रबंधन और विकास उसकी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शामिल है।

एफईएस के सहयोग से ग्रामीणों ने सबसे पहले भूजेश्वर चारागाह विकास एवं प्रबंधन समिति गठित की और चरणबद्ध तरीके से चारागाह का प्रबंधन शुरू किया। समिति के सदस्य दीपक श्रीमाली चारागाह विकास की कहानी समझाते हैं, “हमारी चारे की समस्या जानने के बाद संस्था के लोगों ने बताया कि गांव के चारागाह को दुरुस्त कर दिया जाए तो यह परेशानी दूर हो सकती है। चारागाह का विकास लोगों के विकास से जुड़ा था, इसलिए गांव के लोगों को तत्काल उनकी बातें समझ में आ गईं।” दीपक श्रीमाली कहते हैं कि हमने गांव के 17 हेक्टेयर का चारागाह विकसित करने के लिए सबसे पहले समिति बनाकर उसकी चारदीवारी करवाई। इस जमीन पर खुली चराई पर पूरी तरह रोक लगा दी गई ताकि चारागाह फिर से विकसित और हरा भरा हो सके।

पशुओं की खुली चराई के लिए 20 हेक्टेयर चारागाह को खुला रखा गया ताकि पशुपालकों को परेशानी न हो। विकसित किए जा रहे चारागाह पर स्थानीय प्रजातियों के 2,500 पौधे लगाए और पानी व नमी को बरकरार रखने के लिए छोटे-छोटे चेकडैम बनाए गए। दो साल के भीतर चारागाह में चार से पांच फीट घास खड़ी हो गई। लेकिन लोगों ने चारा काटने में जल्दबाजी नहीं की। उन्होंने चारागाह को और विकसित होने दिया। 2019 में यह इतना विकसित हो गया कि समिति ने लोगों को घास काटने की इजाजत दे दी। समिति ने “हर घर एक दातडी” की व्यवस्था की। इस व्यवस्था के तहत हर घर से केवल एक व्यक्ति को चारा काटने की अनुमति दी गई। समिति ने चारागाह के प्रबंधन के लिए सख्त नियम बनाए हैं। मसलन, अगर कोई व्यक्ति अपने पशुओं को चारागाह में घुसाता है तो उसे 1,000 रुपए का जुर्माना देना होगा। पेड़ से लकड़ियां काटने पर 500 रुपए का जुर्माना है।

दीपक श्रीमाली इस बात से खुश हैं कि समिति के नियमों का सभी ग्रामीण सम्मान करते हैं और अब तक किसी पर जुर्माना लगाने की नौबत नहीं आई है। समिति आमतौर पर नवंबर-दिसंबर में चारा काटने की अनुमति देती है। इसकी ऐवज में समिति प्रत्येक परिवार से 20 रुपए का शुल्क वसूलती है। यह धनराशि समिति के बैंक खाते में जमा होती है और इससे चारागाह के रखरखाव का काम किया जाता है। बूझ गांव के 17 हेक्टेयर के चारागाह से बेहतर नतीजे मिलने पर समिति ने गांव में 15 हेक्टेयर का एक अन्य चारागाह 2019 में विकसित करना शुरू कर दिया। अब यह चारागाह भी ग्रामीणों के लिए चारे का सुलभ स्रोत बन गया है। इन दो चारागाहों की मदद से कुछ ग्रामीण इस स्थिति में पहुंच गए हैं कि वे अतिरिक्त चारा बेचने लगे हैं। सरसी बाई और उन जैसी तमाम महिलाएं जो चारे के लिए 6-7 किलोमीटर दूर जाती थीं, अब उनके लिए घर से 500 मीटर की दूरी पर ही चारा उपलब्ध है। सरसी बाई बताती हैं कि मार्च के मध्य में भी यहां इतना चारा बचा है कि हमें बाजार पर निर्भर होने की जरूरत नहीं है।

उदयपुर के बूझ गांव की तर्ज पर जिले के कई अन्य गांवों में भी इस तरह की पहल हुई है। उदाहरण के लिए 1,000 लोगों की आबादी वाले उदयपुर के ही तिरोल गांव में 52 हेक्टेयर के चारागाह को संरक्षित और विकसित किया जा चुका है। 2017 में शुरू हुए इस संरक्षण कार्य की बदौलत गांव के लगभग 350 परिवार चारे की कमी से उबर चुके हैं। बूझ गांव की तरह यहां भी चारागाह के विकास और प्रबंधन के लिए चारागाह विकास एवं भू प्रबंधन समिति का गठन किया गया है। याद्दाश्त के धनी समिति के 81 वर्षीय अध्यक्ष मेघ सिंह के अनुसार, 2017 से पहले चारागाह भूमि पर ग्राम पंचायत का नियंत्रण था, लेकिन समिति के गठन के बाद और ग्राम पंचायत के अनापत्ति पत्र जारी करने के बाद इसके प्रबंधन का जिम्मा समिति के हाथों में आ गया।

मेघ सिंह के अनुसार, चारागाह से पर्याप्त मात्रा में चारा मिलने से जहां ग्रामीणों का चारे पर खर्च बचा है, वहीं चारे की तलाश में बर्बाद होने वाले समय की भी बचत हुई। तिरोल में बहुत से ग्रामीण ऐसे हैं जिन्होंने इतना चारा इकट्ठा कर लिया है कि उनके पशुओं को आने वाले कुछ महीनों खासकर अप्रैल-जून तक चारे की परेशानी नहीं होगी। डाउन टू अर्थ जब मार्च के दूसरे हफ्ते में इस गांव में पहुंचा, तब कई घरों के सामने सूखे चारे के ढेर देखे, जो चारागाह की देन हैं। यहां मिले 50 वर्षीय ग्रामीण केसर सिंह ने अपनी छह भैसों के लिए पर्याप्त चारे का इंतजाम कर लिया है। इसी तरह 42 वर्षीय सोनकी बाई चारागाह से पिछले 4-5 वर्षों से चारा हासिल कर रही हैं।

उनका कहना है कि बरसात से पहले केवल एक महीने के लिए ही उन्हें चारा खरीदना पड़ता है, शेष 11 महीने के चारे की जरूरत चारागाह पूरी कर देता है। मेघ सिंह चारागाह को ग्रामीणों के लिए वरदान मानते हुए बताते हैं कि इसने चारे पर खर्च लगभग खत्म कर दिया है। सूखे चारे के साथ-साथ चारागाह पर साल भर गांव के मवेशी, खासकर छोटे मवेशी खुली चराई भी करते हैं। एफईएस के कार्यकारी निदेशक संजय जोशी के अनुसार, सूखे और हरे चारे को मिलाकर हर परिवार को साल भर औसतन 10,000 रुपए के मूल्य के बराबर का चारा लगभग मुफ्त मिल रहा है।

आसान नहीं रहा पुनर्जीवन

बूझ और तिरोल जैसे कई गांवों को समझ में आ चुका है कि पशुधन की उत्पादकता और आजीविका को मजबूत बनाने में चारागाह की महती भूमिका है और इसीलिए चारागाह का विकास पूरे राजस्थान में धीरे-धीरे जोर पकड़ रहा है। उदाहरण के लिए भीलवाड़ा जिले के स्वरूपपुरा गांव के ग्रामीणों ने फतेहपुरा और नांगली गांव में चारागाह के विकास से प्रभावित होकर 2017 में समिति का गठन कर 142 हेक्टेयर के चारागाह को विकसित करने की योजना पर काम शुरू किया। हालांकि चारागाह के विकास के काम में उन्हें कई अड़चनों का सामना करना पड़ा। गुर्जर बहुल इस गांव में चारागाह समिति के अध्यक्ष शंकर लाल गुर्जर बताते हैं, “2017 तक चारागाह खुला था। हमें इसकी सीमा का ज्ञान नहीं था।

आसपास के गांवों के पशु यहां चरने आते थे।” समिति ने 2021 में चारदीवारी का काम शुरू किया तो पड़ोसी मोचड़ियों का खेड़ा गांव के लोगों ने विरोध जताते हुए दीवार ढहा दी और अपने पशुओं को चारागाह में प्रवेश करा दिया। मोचड़ियों के खेड़ा के ग्रामीणों ने चारागाह की भूमि पर अपना हक जताते हुए मांडलगढ़ थाने में स्वरूपपुरा के ग्रामीणों के खिलाफ रिपोर्ट लिखवा दी। विवाद बढ़ने पर स्वरूपपुरा के ग्रामीणों ने चारागाह की प्रति निकलवाई और अगस्त 2021 को मांडलगढ़ उपखंड अधिकारी को पेश कर आग्रह किया कि पड़ोसी गांव के लोगों को पाबंद किया जाए जिससे दो गांव के बीच अशांति की स्थिति न बने। शंकर लाल गुर्जर के अनुसार, “तहसील में साबित हो गया कि चारागाह पर स्वरूपपुरा के ग्रामीणों का हक है।” इसके बाद मोचड़ियों के खेड़ा के लोगों को लिखित में देना पड़ा कि वे चारागाह पर हक नहीं जताएंगे।

ग्रामीण अब संघर्ष से हासिल हुए इस 142 हेक्टेयर के चारागाह को विकसित करने की प्रक्रिया में हैं। उनका कहना है कि 2022 में लगभग सभी घरों ने बाजार से चारा खरीदा है। पिछले साल भी पूरे गांव के लोगों ने करीब 3-4 लाख रुपए चारे पर खर्च किए थे। ग्रामीणों को भरोसा है कि अगले दो से तीन साल में चारागाह के विकसित होने पर चारे की समस्या का समाधान मिल जाएगा।

एफईएस के कार्यकारी निदेशक संजय जोशी राजस्थान में शामलात भूमि के प्रबंधन की दिशा में चल रहे प्रयासों पर रोशनी डालते हुए बताते हैं कि राज्य में 7,400 गांवों के अधीन 21 लाख एकड़ शामलात भूमि को विकसित किया जा रहा है। यह भूमि राज्य के 18 जिलों में लगभग 8,085 लाख लोगों को प्रभावित करती है। संजय कहते हैं, “राजस्थान में हम सरकार के साथ मिलकर शामलात भूमि के विकास और प्रबंधन की प्रक्रिया को सुदृढ़ करने का प्रयास कर रहे हैं। इस कार्य को मनरेगा में प्राथमिकता दिलाने, ग्राम स्तर पर योजना बनाने और सुचारू क्रियान्वयन के लिए प्रशिक्षण देने में हम अपनी भूमिका देखते हैं। ऐसी कोशिशें देशभर के 41,800 गांवों में भी हो रही हैं। इन गांवों में 125 लाख एकड़ सामुदायिक भूमि का प्रबंधन किया जा रहा है (देखें, सामुदायिक संसाधनों से चारे की 60 प्रतिशत जरूरतें होती हैं पूरी,)।”

लाभ का दायरा

शामलात भूमि प्रबंधन से कई पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ हैं। एफईएस द्वारा 2016-17 में प्रकाशित “ईकॉलोजिकल हेल्थ मॉनिटरिंग” रिपोर्ट में दक्षिणी राजस्थान के भीलवाड़ा, उदयपुर और प्रतापगढ़ जिले में समुदाय द्वारा प्रबंधित और गैर प्रबंधित शामलात भूमि का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, समुदाय द्वारा प्रबंधित शामलात भूमि पर स्टैंडिंग बायोमास 13.2 टन प्रति हेक्टेयर, कार्बन स्टॉक 5.9 टन प्रति हेक्टेयर, फॉडर बायोमास 1.6 टन प्रति हेक्टेयर और जलावन लकड़ी का बायोमास 2.4 टन प्रति हेक्टेयर था। वहीं दूसरी तरफ गैर प्रबंधित शामलात भूमि पर स्टैंडिंग बायोमास केवल 5.3, कार्बन स्टॉक 2.4, फॉडर बायोमास 0.9 और जलावन लकड़ी का बायोमास 0.9 टन प्रति हेक्टेयर था। रिपोर्ट के अनुसार, समुदाय द्वारा प्रबंधित शामलात भूमि पर स्टैंडिंग बायोमास का मूल्य 39,600 रुपए प्रति हेक्टेयर और कार्बन स्टॉक का मूल्य 1,616 रुपए प्रति हेक्टेयर आंका गया, जबकि गैर प्रबंधित भूमि पर यह क्रमश: 15,900 रुपए और 649 रुपए ही था।

रिपोर्ट के अनुसार, समुदाय द्वारा संचालित और नियंत्रित भूमि से फॉडर बायोमास से प्रत्येक परिवार को 12,177 रुपए का फायदा पहुंचा। साथ ही, जलावन लड़की से 17,836 रुपए के मूल्य के बराबर हर परिवार को लाभ मिला। यह लाभ अनियंत्रित शामलात भूमि से मिलने वाले लाभ से दोगुने से भी अधिक है। चारागाह विकास के अन्य कई फायदे भी हैं जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं, जैसे पानी की उपलब्धता में सुधार, भूजल में बढ़ोतरी, स्थानीय वनस्पतियों और जीवों के लिए सुरक्षित आवास और खाने की उपलब्धता और पारिस्थितिक सेवाओं जैसे परागण और कीट नियंत्रण में बढ़ोतरी। इतना ही नहीं, शामलात प्रबंधन और विकास के लिए जब गांव में सामूहिक पहल बढ़ती है तो ग्राम स्तर पर निर्णय प्रक्रिया में गरीब और पिछड़े वर्गों के लोग, खासकर महिलाओं की भागीदारी में भी सुधार होता है।

कम होते चारागाह

चारागाह सहित शामलात भूमि का प्रबंध राजस्थान के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि पशुधन किसानों की आय का सबसे भरोसेमंद स्रोत है। 20वीं पशुधन जनगणना की मानें तो राजस्थान में देश के 11.4 प्रतिशत यानी 56.8 मिलियन मवेशी हैं जो इसे दूध उत्पादन के मामले में उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा अग्रणी राज्य बनाते हैं। लेकिन राज्य में चारे के अहम स्रोत चारागाह में लगातार कमी हो रही है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के आंकड़े कहते हैं कि राजस्थान में 2014-15 से 2016-17 में बीच 4,000 हेक्टेयर चारागाह की कमी आई है। 2014-15 में यह भूमि 16,74,000 हेक्टेयर से कम होकर 2016-17 में 16,70,000 हेक्टेयर रह गई है।

राजस्थान सरकार की कृषि सांख्यिकी के अनुसार, राज्य में सर्वाधिक 19,12,000 हेक्टेयर चारागाह व अन्य चराई भूमि 1990-91 में थी। अगर इस आंकड़े की तुलना 2016-17 के आंकड़ों से करें तो पता चलता है कि राज्य में 2,42,000 हेक्टेयर चारागाह कम हुए हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो अकेले राजस्थान में 25 वर्षों में दिल्ली के कुल क्षेत्रफल (1,47,488 हेक्टेयर) से करीब डेढ़ गुना चारागाह कम हुआ है। आईजीएफआरआई द्वारा मार्च 2021 में जारी रिपोर्ट “फॉडर रिसॉर्सेस डेवलमेंट प्लान फॉर राजस्थान” की मानें तो राज्य की पशुधन उत्पादकता मुख्य रूप से हरे और सूखे चारे पर निर्भर है। लेकिन यहां 27.16 प्रतिशत हरे और 36 प्रतिशत सूखे चारे की कमी है।

फॉडर एंड पाश्चर मैनेजमेंट पर सितंबर 2011 में जारी योजना आयोग की उपसमूह 3 की रिपोर्ट में पाया गया है कि भारत की अधिकांश चारागाह भूमि जमीन पर चिन्हित नहीं की गई है। इस वजह से इसका आकलन पूर्णत: अनुमानों पर आधारित है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में करीब 12.15 मिलियन हेक्टेयर भूमि चारागाह के रूप में वर्गीकृत है। इनमें से भी करीब 40 प्रतिशत भूमि पर ही चराई हो रही है। स्पष्ट सीमांकन के अभाव में ये भूमि अन्य कार्यों के लिए स्थानांतरित की जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार, 1947 में 70 मिलियन हेक्टेयर में चारागाह थे। 1997 तक करीब आधे चारागाह खत्म हो गए और 38 मिलियन हेक्टेयर ही शेष बचे (देखें, घटते चारागाह, बढ़ती दिक्कत,)। ये चारागाह भी या तो काफी खराब हालत में है।

इन चारागाहों को वेस्टलैंड मान लिया गया है। ये भूमि आसानी से अन्य कार्यों के लिए हस्तांतरित कर दी जाती है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश चराई भूमि लैंटाना, यूपाटोरियम, परथेनियम, प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा जैसी विदेशी आक्रामक प्रजातियों से भर गई हैं। चारागाह के टिकाऊ प्रबंधन सुनिश्चित करने वाले ग्रामीण स्तरीय परंपरागत संस्थानों का पतन हो चुका है। यही वजह है कि नीलगिरी के शोला चारागाह, बीकानेर-जोधपुर-जैसलमेर के सीवान चारागाह, आंध्र प्रदेश के रोलापाडू चारागाह, गुजरात के बन्नी चारागाह के साथ सिक्किम और पश्चिमी हिमालय क्षेत्र के अल्पाइन चारागाह ठीक न होने वाली अवस्था में पहुंच चुके हैं।

2016-17 की कृषि से संबंधित संसदीय समिति की 34वीं रिपोर्ट में भी माना गया है कि अधिकांश चारागाह या तो बिगड़ चुके हैं अथवा अतिक्रमण का शिकार हैं जिससे पशुओं के लिए चराई भूमि कम हो रही है। समिति के अनुसार, भारत में पशुधन की आबादी बढ़ रही है लेकिन कृषिगत और गैर कृषिगत उपयोग हेतु भूमि पर दबाव बढ़ने से चारागाह धीरे-धीरे कम हो रहे हैं।

चारागाह की उपेक्षा और बदहाली ने सबसे अधिक चरवाहा और घुमंतू पशुपालक समुदाय को प्रभावित किया है। राजस्थान में इस समुदाय के लिए प्रतिबद्ध गैर लाभकारी संगठन उर्मूल ट्रस्ट में समन्वयक सूरज सिंह मानते हैं कि चारे और पानी के स्रोत सिमटने से ऊंटों से राइका समुदाय का मोहभंग होता जा रहा है। वह बताते हैं कि राइका अमूमन किसानों के खेतों में अपने पशुओं की चरने के लिए छोड़ देते हैं, लेकिन बहुत से किसानों ने अपने खेतों की मेड़बंदी करा ली है जिससे पशु खेतों में प्रवेश नहीं कर पाते। सूरज के अनुसार, “राजस्थान सरकार ने चारागाह की बहुत सी जमीन को वेस्टलैंड बताकर बड़े-बड़े सौर ऊर्जा संयंत्रों को हस्तांतरित कर दी हैं।” इस समस्याओं से आजिज आकर राइका समुदाय अपने बेड़े में ऊंटों की संख्या कम रहे हैं, नतीजतन राजकीय पशु- ऊंटों की आबादी सीमित हो रही है। पिछले कुछ वर्षों में राजस्थान में ऊंटों की आबादी में 37 प्रतिशत की गिरावट गई है। सूरज सिंह स्पष्ट कहते हैं कि राइका जैसे समुदाय के लिए ऊंटों को एक जगह रखकर खिलाना संभव नहीं है, ऐसे में चारागाह परंपरागत रूप से उनके चारे के स्रोत रहे हैं। वह घुमंतू समुदाय द्वारा पशु त्यागने की बड़ी वजह चारागाह की बदहाली को मानते हैं।

खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा हाल ही में जारी “मेकिंग वे: डेवलपिंग नेशनल लीगल एंड पॉलिसी फ्रेमवर्क फॉर पेस्टोरल मोबिलिटी” के मुताबिक, घुमंतू समुदाय को नीतिगत सहयोग नहीं प्राप्त हो रहा है। नीतियों में उन्हें अनुत्पादक, अप्रासंगिक और पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाना वाला मान लिया गया है।” भारत के पशुपालन पर अहमदाबाद स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईएम), जर्मनी स्थित लीग फॉर पेस्टोरल पीपल्स द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित एक अन्य रिपोर्ट “पेस्टोरलिजम इन इंडिया : ए स्कोपिंग स्टडी” में भी कहा गया है कि घुमंतू समुदाय के विकास के लिए कोई आधिकारिक नीति नहीं है। यहां तक कि कृषि और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय का रवैया भी इनके खिलाफ है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय तो घुमंतू समुदाय को उनके पारंपरिक चराई भूमि से बेदखल करने की मंशा रखता है।”

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Sunday 17 July 2022

आवरण कथा: पशु चारे की जद्दोजहद, भाग-दो

पहले से ही चल रही भूसे की समस्या को बेमौसम बारिश, अत्यधिक गर्मी और गेहूं के कम उत्पादन ने बढ़ा दिया है

By Bhagirath Srivas, Arvind Shukla, Sandeep Meel

On: Monday 18 July 2022
मौसम की मार से गेहूं की फसल प्रभावित हुई। इसके कारण चारे की उपलब्धता पर असर पड़ा है (फोटो: विकास चौधरी)


भूसे की कमी के तात्कालिक और दीर्घकालिक कारण हैं। यह सरकार की नीतिगत असफलताओं का भी नतीजा है। पहला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें 

विडंबना यह है कि यह संकट कितना बड़ा है, इसकी गणना भी संभव नहीं है। वाराणसी स्थित उदय प्रताप कॉलेज में सस्य विज्ञान में असिस्टेंट प्रोफेसर देव नारायण सिंह आंकड़ों के अभाव को इसका कारण मानते हुए कहते हैं कि चारा उपभोग और उत्पादन के जो आंकड़े प्रयोग हो रहे हैं वे बेहद पुराने हैं और अनुमानों पर आधारित हैं। इन आंकड़ों से संकट की सच्ची तस्वीर सामने नहीं आती। मौजूदा स्थिति को देखते हुए उन्हें लगता है कि 20-25 प्रतिशत भूसे की कमी है (देखें, सरकारी नीतियों में हाशिए पर रहा चारा उत्पादन,)।

ग्रास एंड फॉरेज साइंस में जनवरी 2022 में प्रकाशित देव नारायण सिंह का अध्ययन “ए रिव्यू ऑफ इंडियाज फॉडर प्रॉडक्शन स्टेटस एंड अपॉर्च्युनिटीज” कहता है कि पंजाब और हरियाणा में जहां 8 प्रतिशत जुताई योग्य भूमि पर चारा उगाया जाता है, वहां चारे की कमी ज्यादा नहीं है, लेकिन सूखागस्त बुंदेलखंड में यह कमी गंभीर है क्योंकि यहां केवल 2 प्रतिशत जुताई योग्य भूमि पर चारा उगाया जाता है। इंडियन जर्नल ऑफ एनिमल साइंसेस में सितंबर 2021 में प्रकाशित नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एग्रीकल्चर इकॉनोमिक्स एंड पॉलिसी रिसर्च के खेमचंद का अध्ययन बताता है कि बुंदेलखंड क्षेत्र गर्मियों में 62.79 प्रतिशत चारे की कमी से जूझता है।

क्यों गहराया संकट

उत्तर प्रदेश के झांसी स्थित भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान (आईजीएफआरआई) में क्रॉप प्रॉडक्शन डिविजन के प्रमुख सुनील तिवारी मशीनीकरण के उपयोग, फसलों के विविधिकरण और हीट स्ट्रेस (अत्यधिक गर्मी) को मौजूदा चारे की कमी के तीन प्रमुख कारण मानते हैं। उनका कहना है कि कंबाइन हार्वेस्टर से कटाई से भूसा कम निकल रहा है। असल में कंबाइन हार्वेस्टर मशीन फसलों के दाने वाले हिस्से की ही कटाई करती है और पुआल को खेतों में ही छोड़ देती है। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य इस अवशेष में आग लगा देते हैं। इससे बहुत सा सूखा चारा बर्बाद हो जाता है। तिवारी का कहना है कि मशीनीकरण से पहले खेत में अनाज के बराबर भूसा निकलता था लेकिन अब यह घटकर करीब आधा रह गया है।

वह आगे बताते हैं, “किसान गेहूं से सरसों की तरफ आकर्षित हुए हैं क्योंकि उसका भाव गेहूं से अधिक है। इसके अलावा मार्च में हीट स्ट्रेस के चलते भी गेहूं के साथ भूसे के उत्पादन में कमी आई है।” हाइब्रिड बीजों के चलन को भी भूसा संकट से जोड़ा जा सकता है। अधिक उपज देने वाले इन बीजों के पौधे ज्यादा नहीं बढ़ते। पौधे की कम लंबाई का सीधा मतलब है कम भूसा। इसके अलावा प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य पंजाब-हरियाणा में साल की शुरुआत में हुई बारिश ने गेहूं की फसल को बुरी तरह प्रभावित किया। इन दो राज्यों से बड़े पैमाने पर भूसे का निर्यात दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में किया जाता है और यहां चारा व्यापारियों की अच्छी खासी संख्या है। पंजाब के पटियाला निवासी ऐसे ही एक भूसा व्यापारी जॉनी सैणी मानते हैं कि साल की शुरुआत में हुई बारिश से गेहूं की आधी फसल सड़ गई। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में कृषि वैज्ञानिक बलजिंदर कौर सिदाना भी मानती हैं कि पंजाब में गर्मी और बारिश के चलते गेहूं के उत्पादन में 30 प्रतिशत की कमी आई है। पंजाब के कृषि विभाग द्वारा किए गए शुरुआती फसल कटाई प्रयोग (सीसीई) में भी माना गया है कि इस साल मार्च में बढ़ी गर्मी ने गेहूं की उपज को बुरी तरह प्रभावित किया।

मई 2022 में डायरेक्टोरेट ऑफ इकोनोमिक्स एंड स्टेटिस्टिक्स द्वारा जारी तीसरे अग्रिम अनुमान के आंकड़े भी पंजाब और हरियाणा में गेहूं की कम उपज की तस्दीक करते हैं। 31 मई 2022 तक के ये आंकड़े बताते हैं कि पंजाब में रबी सीजन 2020-21 में 171.86 लाख टन के मुकाबले 2021-22 के सीजन 144.56 लाख टन ही गेहूं की उपज संभावित हैं। इसी तरह हरियाणा में पिछले वर्ष के 123.94 लाख टन की तुलना में 106.20 लाख टन ही गेहूं उत्पादन की उम्मीद है। हरियाणा के जींद जिले के राजगढ़ धोबी गांव के कृषन के अनुसार, एक एकड़ के खेत से 10 क्विंटल ही भूसा निकला है। फसल बारिश और गर्मी से प्रभावित नहीं होती तो करीब 20 क्विंटल भूसा निकलता। संगरूर के भूसा व्यापारी नायब सिंह पंजाब में एक नए चलन की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि राज्य में दो साल पहले तक कोई सरसों की फसल नहीं लगाता था, लेकिन सरसों के भाव को देखते हुए लोगों ने सरसों की ओर रुख करना शुरू कर दिया है। वह संगरूर के महासिंहवाड़ा गांव का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि गांव में 2021 में करीब 100 एकड़ (करीब 10 प्रतिशत खेत) में सरसों की बुवाई हुई है। हालांकि बलजिंदर कौर सिदाना मानती हैं कि पंजाब में सरसों की खेती तो बढ़ी है लेकिन इससे गेहूं के कुल रकबे में विशेष अंतर नहीं पड़ा है।

7 जनवरी 2022 को जारी हुए रबी सीजन के बुवाई के आंकड़े भी गेहूं के कम रकबे और सरसों के बढ़े रकबे की पुष्टि करते हैं। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, इस अवधि तक पिछले वर्ष की तुलना में 5.84 लाख हेक्टेयर में गेहूं की कम बुवाई हुई है। गेहूं का कम रकबा अन्य सभी फसलों की अपेक्षा सबसे कम हुआ है। उत्तर प्रदेश में गेहूं का रकबा सबसे ज्यादा कम हुआ है। राज्य में 3.11 लाख हेक्टेयर गेहूं का रकबा घटा है। दूसरे स्थान पर हरियाणा है जहां 1.35 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की कम बुवाई हुई है। महाराष्ट्र में 1.20 लाख हेक्टेयर, मध्य प्रदेश में 1.14 लाख हेक्टेयर और गुजरात में 0.90 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। गेहूं की खेती के लिए लोकप्रिय पंजाब में भी इसका रकबा 0.20 लाख हेक्टेयर कम हुआ है। दूसरी तरफ सरसों का रकबा 2020-21 की तुलना में 2021-22 में सर्वाधिक 17.19 लाख हेक्टेयर बढ़ा। तिलहन फसलें कुल 98.85 लाख हेक्टेयर में बोई गई हैं। इसमें 89.71 लाख हेक्टेयर की हिस्सेदारी सरसों की है। इसका ज्यादातर रकबा उन्हीं राज्यों में बढ़ा जहां गेहूं का कम हुआ। राजस्थान अपवाद जरूर है, जहां दोनों का रकबा बढ़ा है। इन तमाम स्थितियों ने प्रत्यक्ष रूप से भूसे की उपलब्धता प्रभावित की।

मांग और आपूर्ति में असंतुलन

भारत में फसलों के अवशेष, सिंचित व असिंचित भूमि और सामुदायिक संसाधन जैसे वन, स्थायी चारागाह व चराई भूमि चारे के तीन अहम स्रोत हैं। सूखा चारा मुख्यत: फसलों के अवशेष जैसे भूसा, पुआल से प्राप्त होता है। नीति आयोग की फरवरी 2018 में जारी हुई वर्किंग ग्रुप की रिपोर्ट “डिमांड एंड सप्लाई प्रोजेक्शंस टूवार्ड्स 2033: क्रॉप, लाइवस्टॉक, फिशरीज एंड एग्रीकल्चरल इनपुट्स” की मानें तो देश में हरे चारे की 40 और सूखे चारे की 35 प्रतिशत तक की कमी है। रिपोर्ट आगे कहती है कि हरे चारे की कमी मुख्य रूप से 10 मिलियन हेक्टेयर में फैले चारागाह के बड़े हिस्से पर अतिक्रमण और चारा फसलों के सीमित क्षेत्र के कारण है। रिपोर्ट के अनुसार, चारे की कीमत दूध की तुलना में तेजी से बढ़ रही है जिससे लाभप्रदता घट रही है। इसकी कमी के चलते ही डेरी क्षेत्र की उत्पादकता कम है। इसी के चलते देश में आवारा पशुओं की समस्या विकराल होती जा रही है। 2019 में जारी हुई 20वीं पशुधन जनगणना के अनुसार, भारत में आवारा पशुओं की संख्या 50 लाख से अधिक हो चुकी है। सर्वाधिक पशुधन की आबादी वाले 10 में से 7 राज्यों में इनकी संख्या 2012 से 2019 के बीच बढ़ी है। ऐसे राज्यों में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात प्रमुखता से शामिल हैं। इनमें से अधिकांश राज्य चारे की कमी से जूझ रहे हैं।

जून 2017 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ लाइवस्टॉक रिसर्च में प्रकाशित बंगलुरू के वेटरिनरी कॉलेज के डिपार्टमेंट आॅफ वेटरिनरी एंड एिनमल हस्बेंडरी एक्सटेंशन एजुकेशन में स्कॉलर मुत्तूराज यादव के अध्ययन के अनुसार, भारत में 355.93 मिलियन टन सूखा चारा फसलों के अवशेष से प्राप्त होता है। अध्ययन के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर 574.3 मिलियन टन सूखा चारा उपलब्ध है। इसकी 62.5 प्रतिशत आपूर्ति फसलों के अवशेष से होती है। वहीं हरे चारे की आपूर्ति चारा फसलों ज्वार, बाजरा, मक्का, बरसीम आदि से होती है। देश के कुल फसली क्षेत्र में से केवल 5 प्रतिशत पर ही चारा उगाया जाता है। शेष हरे चारे की आपूर्ति चारागाह, वन व अन्य सामुदायिक भूमि से पूरी होती है।

उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के नरैनी में स्थित इस गोशाला में दिसंबर 2021 में चारे की कमी के चलते बड़े पैमाने पर गायों की मौत हो गई थी। यहां की लगभग 50 मरी और अधमरी गाय को मध्य प्रदेश के जंगल में ले जाकर दफना दिया गया था (फोटो: अशोक निगम)

अगस्त 2019 में आईजीएफआरआई के शोधकर्ता और वैज्ञानिक अजॉय कुमार रॉय, नीतिश रत्तन भारद्वाज और सनत कुमार महंता के शोधपत्र “रिविजिटिंग नेशनल फॉरेज डिमांड एंड अवेलिबिलिटी सिनेरियो” के अनुसार, चारा फसलों से 88 प्रतिशत हरे चारे की आपूर्ति होती है और शेष वनों, चारागाह, परती भूमि और जुताई योग्य बंजर भूमि से मिलता है। हरे चारे के सभी स्रोतों से 734.2 मिलियन टन की आपूर्ति होती है, जबकि आवश्यकता 827.19 मिलियन टन की है। अध्ययन के अनुसार, देश में करीब 89 मिलिटन टन (11.24 प्रतिशत) हरे चारे की कमी है। वहीं सूखे चारे की 23.4 प्रतिशत की कमी है। 426.1 मिलियन टन की मांग के मुकाबले 326.4 मिलियन टन ही सूखा चारा उपलब्ध है। हालांकि कुछ अन्य रिपोर्ट कमी की अलग तस्वीर पेश करती हैं। मसलन 2016-17 की कृषि संबंधी स्थायी समिति की 34वीं रिपोर्ट में बंगलुरु स्थित राष्ट्रीय पशु पोषण एवं शरीर क्रिया विज्ञान संस्थान (एनआईएएनपी) अनुमान के आधार पर कहा गया कि वर्ष 2020 में 23 प्रतिशत सूखे चारे, 32 प्रतिशत हरे चारे की कमी होगी। रिपोर्ट में अनुमान है कि 2025 तक हरे चारे की कमी बढ़कर 40 प्रतिशत हो जाएगी जबकि सूखे चारे की कमी 23 प्रतिशत ही रहेगी। 10वीं पंचवर्षीय योजना के दस्तावेज में अनुमान लगाया गया है कि 2025 तक हरे चारे की कमी 64.87 और सूखे चारे की कमी 24.92 प्रतिशत हो जाएगी।

20वीं पशुधन जनगणना के अनुसार, भारत में करीब 535 मिलियन पशु हैं जो विश्व में सर्वाधिक है, लेकिन इनकी दूध उत्पादकता वैश्विक औसत 2,238 किलोग्राम प्रतिवर्ष की तुलना में ही 1,538 किलो प्रतिवर्ष ही है। चारे की भारी कमी पशुओं के कुपोषण और कम दूध उत्पादन की प्रमुख वजह है। मार्च 2015 में लोकसभा में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में कृषि मंत्रालय ने बताया कि भारत में प्रति वर्ष प्रति पशु 1,200 किलो हरा और 1,400 किलो सूखा चारा ही उपलब्ध है। जबकि सूखे चारे की वार्षिक आवश्यकता लगभग 2,200 किलो (6 किलो प्रतिदिन/पशु) और हरे चारे की वार्षिक आवश्यकता 3,600 (10 किलो प्रतिदिन/पशु) किलो है।


आईजीएफआरआई के मुताबिक, देश की कुल जोत के मुकाबले लगभग 4 प्रतिशत क्षेत्रफल में ही चारा उगाया जाता है, जबकि पशुधन की आबादी को देखते हुए इसे 12 से 16 प्रतिशत करने की आवश्यकता है। देव नारायण सिंह एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू की ओर इशारा करते हुए बताते हैं कि खाद्यान्न फसलों की तरह चारा फसलों का दस्तावेजीकरण नहीं हो रहा है। सबसे अधिक पशुधन के बाद भी चारा फसलों को कल्टीवेटेट फसल के रूप में मान्यता नहीं मिली है। वह चारे संकट को नीतिगत मानते हुए कहते हैं, “सरकार ने चारा बाजार का व्यवस्थित तंत्र विकसित करने की कभी पहल नहीं की। यही वजह है कि सरकारी सेक्टर के अधीन कोई चारा मार्केट नहीं है। पूरा बाजार असंगठित क्षेत्र के हवाले है। राज्यों ने चारे की कमी को देखते हुए कुछ कदम जरूर उठाए हैं, लेकिन कोई समस्या की जड़ में नहीं गया” अजॉय कुमार रॉय अपने अध्ययन में सुझाव देते हैं कि चारा विकास कार्यक्रम मिशन मोड में चलाने की आवश्यकता है। सालभर चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए चारा उत्पादन और उसके संरक्षण की जरूरत है। चारागाह नीति बनाने और बदहाल अवस्था में पहुंच चुके चारागाह को पुनर्जीवित करने की भी जरूरत है। साथ ही चारे फसलों की किस्मों में सुधार, तकनीकी सुधार, बीज उत्पादन की दिशा में अनुसंधान और विकास की तत्काल आवश्यकता है। 

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