प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में चारागाह क्षेत्र विकसित करने के लिए पंचायतें लाखों रुपए खर्च करती हैं, वहीं खान विभाग की इन जमीनों पर खनन के पट्टे देने की तैयारी है। प्रदेश में 4 जिलों में 32 जगह की 71.11 हेक्टेयर चारागाह भूमि पर पट्टे दिए जाएंगे। राजसमंद जिले में चारागाह भूमि पर 13, उदयपुर में 2, सीकर के नीमकाथाना में 2 और डूंगरपुर जिले में 15 खनन पट्टे जारी होंगे।
विभाग ने यूं तो पूरे प्रदेश में 180 खनन पट्टे देने के लिए टेंडर निकाले थे। इनके लिए 16 जनवरी से लेकर 7 मार्च के बीच पट्टे दिए जाने हैं। हालांकि, चारागाह भूमि वाले ये चार जिले ही हैं। इनसे खान विभाग को भले ही रेवेन्यू मिलेगा, लेकिन जिन ग्रामीणों के पशु इन चारागाह क्षेत्रों पर निर्भर हैं, उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।
खनन विभाग की पॉलिसी के तहत जितनी जमीन खनन के लिए दी जाएगी, उतनी ही खान संचालक उसी गांव या आसपास के इलाके में खरीदकर देगा, लेकिन उसी गांव या आसपास में जमीन मिलना और उस पर चारागाह विकसित करना भी चुनौतीभार काम रहेगा। इस बीच, खनन विभाग से लेकर खान संचालकों और ग्रामीण व विशेषज्ञों के अपने-अपने तर्क हैं।
खान विभाग यह कहते हुए अपनी पॉलिसी को सही बता रहा है कि खनन क्षेत्र विकसित नहीं किए जा सकते, जबकि चारागाह जमीन तो डवलप की जा सकती है। बता दें कि राज्य सरकार की ओर से चारागाह विकास के साथ पौधरोपण, मनरेगा योजना के तहत पर्यावरण संरक्षण पर पूरे साल के दौरान 1650 करोड़ रुपए खर्च करना प्रस्तावित है।
खनन क्षेत्र विकसित नहीं हो सकता, चारागाह बनाना आसान: खान विभाग
खान विभाग उदयपुर जोन के अतिरिक्त निदेशक दीपक तंवर का कहना है कि खनन के लिए कोई नया क्षेत्र विकसित तो किया नहीं सकता। जहां खनिज मौजूद होगा, उस जमीन पर तो खनन की अनुमति देंगे। अब चारागाह एरिया में ही खनिज है तो वहीं पट्टा दिया जाएगा। चारागाह दूसरी जगह विकसित करना संभव है। खनन से सरकार को राजस्व की प्राप्ति होगी। इससे प्रदेश के विकास में मदद मिलेगी। इसके अलावा प्रदेश में मिनरल्स निकलने से रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।
खान संचालकों की दलील- पहले पट्टे का, फिर चारागाह जमीन का पैसा देना दोहरी मार
खान संचालकों को शुरुआत में बोली का 40 प्रतिशत पैसा 4 किस्तों में आगामी 15 दिन में जमा कराना होगा। इसके बाद अपने स्तर पर उसी गांव या आसपास में जमीन खरीदकर रेवेन्यू को देनी होगी। इस पर चारागाह विकसित करने के लिए तय राशि देनी होगी। इसके बाद खनन की अनुमति मिलेगी। उदयपुर क्वार्टज-फेल्सपार माइंस एसोसिएशन के अध्यक्ष नवल सिंह चुंडावत का कहना है कि खनन पट्टे के बराबर गांव में जमीन खरीदने और उस पर चारागाह विकसित करने की शर्त उनके लिए दोहरीमार जैसा है। गांव या आसपास में जमीन मिलना ही मुश्किल होगा। इसके अलावा खनन का पैसा देने के बाद इनका भार अलग से पड़ेगा। टीएसपी एरिया में सरंपच की एनओसी चाहिए। इसके साथ अन्य जगहों पर कलेक्टर से अनुमति भी लेनी होगी।
ग्रामीणों के सामने पशुओं को चराने की चुनौती, ईको सिस्टम भी बिगड़ेगा
उदयपुर, राजसमंद, डूूंगरपुर के ग्रामीण क्षेत्रों के चारागाह क्षेत्रों में कई जगह तेंदुओं का मूवमेंट रहता है। तेंदुए अक्सर शिकार की तलाश में यहां जाते हैं। इनका इको सिस्टम भी बिगड़ेगा। नया चारागाह गांव से दूर हुआ तो ग्रामीण वहां पशु लेकर जाएं, इसकी संभावना भी कम है। सेवानिवृत्त सीसीएफ राहुल भटनागर बताते हैं कि चारागाह भूमि होती ही मवेशियों की जरूरत के लिए है। चारागाह क्षेत्र नष्ट हुए तो ग्रामीण पशुओं को वन क्षेत्र में छोड़ेंगे। वहां मानसून में नए पौधे उगते हैं। इससे वन क्षेत्र पर असर पड़ेगा।
इन चार जिलों में 32 जगह करेंगे नीलामी
- राजसमंद: गढ़बाेर तहसील के धानीन गांव में चारागाह भूमि पर 13 प्लाॅट की नीलामी हाेगी। क्वार्टज, फेल्सपार व ग्रेनाइट जैसे खनिज हैं। एरिया 47.02 हेक्टेयर।
- डूंगरपुर: दाेवडा, सीमलवाड़ा तहसील के भचडीया, सीथल गांव में 15 प्लाॅट। मेसेनरी स्टाेन है। एरिया 16.4435 हैक्टेयर।
- सीकर: नीमकाथाना के मंडोली एरिया में दाे प्लाॅट। मेसेनेरी स्टाेन। एरिया 5.3794 हेक्टेयर।
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