माइंस मालिकों को फायदा पहुंचाने के लिए नियम ताेड़ने का चाैंकाने वाला मामला सामने आया है। यह प्रकरण डाबला की 51 माइंस से जुड़ा हुआ है, जिनके मालिकाें काे फायदा पहुंचाने के लिए कलेक्टर अविचल चतुर्वेदी ने चारागाह भूमि से ही रास्ता निकाल दिया। रास्ता निकालने का आदेश जारी हाेने से डाबला के लाेगाें में आक्राेश है।
डाबला पंचायत ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास कर दिया है, जिसमें कलेक्टर से आदेश को विड्राॅ करने की मांग की है। पंचायत ने प्रस्ताव में कहा कि चारागाह भूमि से रास्ते की ग्रामीणों को कोई जरूरत नहीं है। यह केवल खनन कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के लिए निकाला है।
ग्रामीणों ने हाईकोर्ट के जरिए कलेक्टर चतुर्वेदी को कानूनी नोटिस भी भिजवाया है। उन्हाेंने 9 जून को डाबला की चारागाह भूमि से सार्वजनिक रास्ते के आदेश निकाले। चारागाह भूमि के बदले क्षतिपूर्ति के लिए भी इसी गांव से जमीन दी है।
पड़ताल : इन माइंस के लिए अभी नहीं है रास्ता, अब होगा कारोबारियों को फायदा
चारागाह भूमि से गंगलेडा मोहल्ला व बंधकी ढाणी के लोगों के आने-जाने का रास्ता नहीं है। ग्रामीण भी इस रास्ते का उपयोग नहीं करते हैं। ग्रामीणों के अनुसार चारागाह भूमि से यह रास्ता केवल खनन कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के लिए ही निकाला गया है।
रास्ता सेट अपार्ट करने के लिए क्षतिपूर्ति के रूप में जिन खसरा नंबरों को लिया है, उनमें 1740/2 को ग्राम पंचायत ने पहले ही आबादी विस्तार के लिए प्रस्ताव लेकर प्रशासन गांवों के संग अभियान में दिया है। फिलहाल यहां 51 माइंस अलॉट हैं, लेकिन उनके लिए रास्ता नहीं है।
माइंस के लिए रास्ता चाहिए तो काराेबारियाें काे खेत खरीदने पड़ेंगे, लेकिन किसान उनहें बेचने को तैयार नहीं हैं। गांव की ये सभी 51 माइंस रोड़ी-पत्थरों की हैं। ये शुरू होती हैं, तो खनन विभाग को सालाना दो करोड़ रुपए की रॉयल्टी मिलना शुरू हो जाएगी। इसके अलावा 51 माइंस का निजी कारोबार सालाना करीब 50 करोड़ रुपए तक होने का अनुमान है।
आबादी से निकलेंगे डंपर, हादसों और प्रदूषण का खतरा भी बढ़ेगा
ग्रामीणों के अनुसार डाबला की आबादी आठ हजार से ज्यादा है। चारागाह भूमि खाली पड़ी है, जिसमें पेड़-पौधे लगे हुए हैं। माइनिंग जोन को गांव की जमीन से रास्ता देने काे लेकर हमारा विरोध है। इससे बड़ी संख्या में डंपर आबादी से गुजरेंगे। प्रदूषण और हादसों का खतरा बढ़ेगा। गांव से आगे 51 राेड़ी-पत्थरों की माइंस अलॉट हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि रोज कितने वाहन गांव से होकर निकलेंगे।
एक्सपर्ट व्यू : निजी या व्यवसायिक उपयोग के लिए नहीं दे सकते चारागाह भूमि
हाईकोर्ट के एडवोकेट एके जैन के अनुसार चारागाह की भूमि को सिर्फ सार्वजनिक उपयोग मतलब ग्रामीणों के रास्ते आदि और सरकारी प्रोजेक्ट के लिए ही अलॉट किया जा सकता है। इस श्रेणी की जमीन को निजी और व्यवसायिक काम के लिए नहीं दिया जा सकता है। इसे लेकर सुप्रीम काेर्ट ने भी एक फैसले में निर्देश जारी कर रखे हैं। डाबला प्रकरण में 11 साल पहले भी रास्ता काटने के आदेश को वापस लेने पर हाईकोर्ट ने सही माना था।
11 साल पहले ऐसा आदेश वापस लेना पड़ा था तत्कालीन कलेक्टर को: एक मई 2011 को तत्कालीन कलेक्टर धर्मेन्द्र भटनागर ने इसी चारगाह भूमि से रास्ता दिया था। विरोध के बाद कलेक्टर ने रास्ता काटने का आदेश विड्राॅ कर लिया था। हाईकोर्ट ने 13 अगस्त 2012 को रास्ता विड्राॅ करने के आदेश को वैध ठहराया था। इसके बाद से डाबला की चारागाह भूमि से होकर निकलने वाला माइनिंग जोन का रास्ता बंद है।
पंचायत और ग्रामीणों से मिली आपत्ति को रिकॉर्ड पर ले लिया है। अब इस मामले का रिव्यू करवाया जा रहा है। मामले में नियमानुसार कार्रवाई होगी।
- अविचल चतुर्वेदी, कलेक्टर
डाबला के ग्रामीणों ने चारागाह भूमि से रास्ता निकालने के आदेश को लेकर ज्ञापन दिया है। हमने इस ज्ञापन को कलेक्टर के पास भिजवा दिया है।
-बृजेश कुमार, एसडीएम, नीमकाथाना
24 जून को डाबला पंचायत की पाक्षिक बैठक में पंचायत की बिना सहमति व एनओसी के चारागाह भूमि से विधि विरुद्ध रास्ते के लिए आबंटन की कार्रवाई की है। इस रास्ते का कोई सार्वजनिक उपयोग नहीं है। राजनीतिक दबाव में मिथ्या तथ्यों के आधार पर केवल खनन कारोबारियों के लिए रास्ता निकाला है। इससे खनन माफियाओं के हौसले बढ़ेंगे। हमने इसके खिलाफ संघर्ष का फैसला किया है।
-सागरमल यादव, सरपंच ग्राम पंचायत डाबला
मूल ऑनलाइन लेख - https://www.bhaskar.com/local/rajasthan/sikar/neem-ka-thana/news/collector-gave-way-to-51-mines-from-pasture-land-now-there-will-be-an-annual-business-of-50-crores-130009661.html
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