Sunday 18 August 2024

दो साल में फलदार पौधों से लहलहाई बंजर भूमि: बड़ाखेड़ा पंचायत पहल, 2 सौ बीघा चारागाह भूमि को किया हरा भरा


बूंदी की बड़ाखेड़ा पंचायत की एक पहल ने सालों से बंजर पड़ी चारागाह भूमि को महज दो साल में ही फलदार व अन्य पौधों से हरा भरा बना दिया। दो सौ बीघा से अधिक भूमि को संरक्षित करते हुए यहां फलदार व अन्य छायादार पौधों लगाकर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ठोस पहल की है। वहीं, इससे पंचायत की आमदनी बढ़ाने पर भी फोकस है।

बूंदी में चारागाह भूमि के विकास को लेकर योजनाएं तो बनती है, लेकिन धरातल पर नहीं उतरती हैं। इससे अलग जिले की बड़ाखेड़ा पंचायत ने पर्यावरण व चारागाह भूमि के संरक्षण की ठोस पहल करते हुए सीमित संसाधनों से दौ सो बीघा चारागाह भूमि को फलदार व छायादार पौधों से हरा भरा कर दिया। इस पहल को लेकर पंचायत प्रशासन के साथ ग्रामीण खुश हैं। वहीं, जिला कलेक्टर ने भी इस पहल की तारीफ की है।

पर्यावरण व चारागाह भूमि के संरक्षण का प्रयास

बड़ाखेड़ा पंचायत क्षेत्र में दो हजार बीघा चारागाह भूमि स्थित है। जिस पर अक्सर अतिक्रमियों की निगाह लगी रहती है। ऐसे में पंचायत ने इस भूमि को संरक्षित करने की पहल करते हुए फल व छायादार पौधे लगाकर एक सार्थक पहल की है। इससे चारागाह भूमि पर अतिक्रमण की रोकथाम हो सकेगी। वहीं, ग्रामीणों का रुझान चारागाह विकास की ओर बढ़ेगा। फलदार पौधे भविष्य में पंचायत के लिए आमदनी का जरिया बन सकेंगे।

सीमित संसाधनों से लगाए एक हजार पौधे

इस काम की मॉनिटरिंग करने वाले पंचायत कार्मिक गजेंद्र सिंह बताते है कि एक साथ पूरी चारागाह भूमि को विकसित करना संभव नहीं था। इसलिए दो सौ बीघा को चिह्नित कर सबसे पहले मनरेगा में भूमि को समतल व पौधारोपण योग्य बनाया। इसके बाद आम, अमरूद, अनार, आंवला, लहसोड़ा, पीपल, नीम, नीबू सहित अन्य प्रकार के एक हजार से अधिक पौधे लगाकर मनरेगा की लेबर को ही देखभाल का टास्क दिया। इसकी प्रोपर रूप से दो साल तक मॉनिटरिंग की गई। समय-समय पर खरपतवार नष्ट करने से लेकर सिंचाई के लिए साधन विकसित किए। इसी का नतीजा है कि अब यहां दो साल में पौधे वृक्षों का आकार लेने लगे हैं।

आक्सीजन जोन और ईको टूरिज्म पर फोकस

पंचायत के सरपंच प्रदीप सिंह बताते है कि इस पहल के पीछे ग्रामीणों को चारागाह के संरक्षण के लिए जोड़ने के साथ ग्रामीण स्तर पर एक ऐसा क्षेत्र विकसित करना था। जो पर्यावरण की दृष्टि से लाभकारी हो और ग्रामीण इसके प्रति जवाबदेह बने। कोरोना काल में आक्सीजन जोन खूब चर्चा में आए, इसलिए भी इस पहल को लेकर रुझान बढ़ा। फलदार पेड़ पंचायत के लिए भविष्य में आमदनी का जरिया बन सकते हैं। वहीं, हरियाली वाला क्षेत्र विकसित होने से ईको टूरिज्म की भी संभावना बन सकती है।

मूल ऑनलाइन लेख - https://www.bhaskar.com/local/rajasthan/bundi/news/in-two-years-the-barren-land-was-filled-with-fruit-trees-bundi-rajasthan-133490172.html

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